आखिर कब तक

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आखिर कब तक

रीना और शुचि के बढ़ते कदम अचानक ठिठक से गये थे।  जिस तेजी के साथ सीढ़ियाॅं दर सींिढ़याॅं चढ़ते
हुए उन दोनों ने तरक्की की राह पकड़ी थी
, उसी राह में कुछ रोढ़े आ गये थे। वह बढ़ना तो चाह रही थीं आगे
की ओर
, परन्तु उनके कदम
उन्हें पीछे  की ओर ढकेल रहे थे
, क्योंकि जिस आॅफिस में वे
दोनों काम कर रही थीं वहीं के सीनियर बाॅस की घूरती नज़रें और अनर्गल बातों से वे
रोज़ाना दो चार हो रही थीं। आज भी उन्हीं की वजह से वे दोनों आॅफिस की तरफ जाने से
कतरा रही थीं पर क्या करतीं उन्हें जाना ही पड़ा
, आफिस पहॅुचकर वे दोनों सीधे अपने-अपने रूम की ओर बढ़
गई।




 तभी आॅफिस बाॅय ने आकर कहा, ‘‘
सर आपको बुला रहे हैं।’’

यह तो रोजाना का ही नियम बन गया था, आफिस में घुसते ही बाॅस का बुलावा आ जाता उनके लिए । रीना
ने पर्स मेज पर रखा और उनके कमरे की ओर बढ़ गई।


वहाॅं पर बैठे बाॅस किसी काम में तल्लीन थे या फिर काम करने का झूठा दिखाबा कर
रहे थे ।
रीना के आने के कुछ देर बाद, वे नजरें उठाकर उसकी तरफ देखते हुए बोले, ‘‘हाॅं भई रीना जी गुड माॅर्निंग।’’

रीना के गुड माॅर्निंग कहने से पहले ही वे दुबारा बोल पड़े, ‘‘हाॅं, तो रीना जी आज काम करने का इरादा नहीं है जो इतनी
देर से पहुॅचंीं।
’’ रीना ने घड़ी की तरफ नज़र डाली ग्यारह बजने में सिर्फ 10 मिनट बाकी थे।
उसी समय शुचि भी कमरे मे दाखिल हुई, सर ने यही बातें दोबारा से शुचि से भी दोहराईं। वे दोनोें
कुछ भी कहने से अचकचा रही थीं इसलिए शान्त खड़ी रही। नज़रें नीचे फर्श की ओर थीं
,
क्योंकि वे बाॅस की घूरतीं
नज़रों का सामना नहीं करना चाहती थीं।


तभी सर फिर बोले, ‘‘अच्छा चलो अब तुम दोनों जाओ और अपना काम शुरू करो और हाॅं साइन लंच के बाद करना
क्योंकि अब तुम्हारे आधे दिन की छुट्टी हो गई है।
’’
बाॅस की बातें सुन, रीना बिना कुछ बोले, व किसी भी बात का जबाव दिये बिना ही बाहर की ओर चल दी और उसने अपने कमरे की ओर
न जाकर कैन्टीन की ओर रूख कर लिया। शुचि ने जब यह देखा कि रीना अपने रूम में न
जाकर बाहर की तरफ जा रही है तो वह टोंकती हुई बोली
, ‘‘रीना क्या हुआ, किधर जा रही हो?’’

परन्तु रीना तो विचार मग्न मुद्रा में चलती जा रही थी। शुचि भी उसके पीछे हो
ली
, रीना सीधे कैन्टीन
में जाकर बैठी गई। शुचि भी सामने की सीट पर आकर बैठ गई थी
, शुचि ने दो काॅफी का आॅर्डर दिया और रीना से पूछा,
‘‘क्यों यार, क्या हुआ?’’

 रीना बोली ‘‘जब आधे दिन की छुट्टी हो ही गई तो काम क्यों करूॅं,
आने में कुछ देर ही तो हुई
है
, तो आधे दिन की
छुट्टी। अब यह नया तरीका निकाला है। उन्होेनें परेशान करने का।
’’
शुचि भी सर की इस बात परेशान तो थी किंतु उसने रीना के बारे में सोंचा,
कि क्या यह वही रीना है जो
हर काम को बड़े मन व जतन से करती थी और अब बाॅस की हर दिन एक नई ज्यादती की बजह से
उसका काम से दिल ही हट गया है।


हालाॅंकि उसकी भी वही स्थिति थी, फिर भी वह रीना से कुछ कम परेशान थी।

रीना ने बहुत ज्यादा मेहनत करके यह मुकाम हासिल किया था, पर अब जब वह अच्छी पोजीशन पर
है
, तो बाॅस के गलत
इरादों के चलते मानसिक रूप से परेशान हो गई है
, ऐसे में कोई भी कार्य कैसे संभव हो सकता है।
जब तक मन साथ न दे, तो तन भी साथ छोड़ देता है। तभी काॅफी आ गई, वे दोनों काॅफी पीने लगीं।
वे दोनो बिल्कुल तटस्थ भाव से शान्त होकर बैठी थीं। आखिर रीना ने ही चुप्पी
तोड़ते हुए कहा
, ‘‘ शुचि मैं इस जाॅब से इस्तीफा दे रही हूॅं।’’
यह सुन शुचि एकदम से चैंक गई क्योंकि उसे पता था कि रीना को यह जाॅब कितनी
मुश्किल से मिली थी और घर में भी सिर्फ रीना ही कमाने वाली थी।
भाई की पढ़ाई, हाॅस्टल का खर्चा, माॅं की दवाई व अन्य घरेलू खर्चें उसकी ही कमाई से पूरे होते थे। पापा के ना
रहने पर वही अपने परिवार का एक मात्र सहारा थी। पापा की असमय मृत्यु के चलते माॅ
हरदम बीमार रहने लगी थीं। पापा की नौकरी भी प्राइवेट थी
, अतः इस कारण उनकी जाब का कोई क्लेम भी न मिला था।


रिलेटेड –मेरा लड़की होना 

शुचि ने कहा ‘‘इस तरह जल्दबाजी में कोई भी फैसला ना कर, अभी अगर हम हार जायेंगें तो कल को कोई दूसरी
लड़कियाॅं भी इसी तरह परेशान हो सकती है
, और फिर मैं हॅूं न तेरे साथ।’’

रीना को उसकी बात ठीक लगी । वह उठते हुए बोली, ‘‘शुचि चल अब अपना काम शुरू करते हैं।’’ वे दोनों अपने कमरे में आकर
कार्य करने लगीं। शुचि  आफिस कार्य निबटा
ही रही थी
, कि तभी आॅफिस ब्याय
फिर से आ गया और उससे कहा
, ‘‘सर मीटिंग में जाने को बुला रहे हैं।’’ उसने सोचा आज तो कोई मीटिंग नहीं है, शायद अचानक ही बन गई होगी।
 ‘‘सर! किसके साथ मीटिंग है।’’ शुचि ने बाॅस के कमरे में पहुॅच कर कहा।
वे उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोले, ‘‘होटल रनवे में लंच के समय मीटिंग रखी है, तुम चलोगी या रीना को ले
जाऊॅं
?’’ उसने सोचा रीना तो
वैसे ही आजकल डिस्टर्ब है और वह जल्दी ही परेशान भी हो जाती है। अतः उसने फौरन कहा
‘‘नहीं सर, उसे आज रहने दें, मैं चल रही हूॅं।’’
बाॅस एक दम से अचम्भित हो गये। आज अचानक से ऐसा क्या हुआ? जो यह स्वयं ही जाने को
तैयार हो गई
, कोई नानकुर नही।

शाबाश शुचि, तुम बहुत आगे जाओगी।’’ सर खुश होकर बोले
कार की पिछली सीट पर बाॅस के साथ बैठी वह सांेच रही थी, ना जाने आज यह सर क्या समस्या खड़ी करेंगें। पिछले
कुछ दिनों से उन्होंने जिस तरह से उन लोगों को परेशान कर रखा थ्ंाा उससे हमेशा के
लिए उनके भीतर एक डर घर कर गया था।


लेकिन उसने मन ही मन यह सोच रखा था कि एक दिन तो वह इन्हें  सबक सिखा कर ही
रहेगी
, अन्यथा वह दोनों
किसी दिन इनकेे झाॅंसें में आकर बरबाद ही हो जायेंगीं।
गाड़ी होटल के गेट के पास आकर रूकी, वह कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई। बाॅस भी निकल आये थे।
होटल के गेट पर दरबान ने स्वागत में सिर झुकाया
, और कार र्पािर्कंग में ले जाकर खड़ी कर दी।
वे दोनों अन्दर दाखिल हो गये। एक हाॅल में मीटिंग का इंतजाम था।  उसकी एम.एन.सी. कम्पनी थी। भारत में अभी कुछ ही
आॅफिस थे।


बाकी तो अन्य देशों में थे। वहाॅ पर एकदम से खुला माहौल थ्ंाा, वैसे उसको तो इन सब चीजों की
आदत पड़ चुकी थी। वहाॅं कोई ड्रिंक कर रहा था या फिर महिला पुरूष खड़े आपस में बतिया
रहे थे
, परन्तु यह नये बाॅस
तो उससे कुछ ज्यादा ही नजदीकी चाह रहे थे।


मीटिंग शुरू हो गई थी सभी अपने अपने स्थान पर बैठ गये थे। शुचि भी बाॅस के
बराबर वाली सीट पर बैठ गई तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उसे निहारा
,  मानों उनके दिमाग में कुछ अलग ही चल रहा है।
एक घण्टे मीटिंग चली फिर सब लंच के लिए डायनिंग एरिया की तरफ चल दिये। लंच में
सिर्फ नानवेज था। आज सोमवार था और मम्मी व्रत करती थी। इसलिए वह आज खा नहीं सकती
थी
, वैसे तो वह सब कुछ
खाने की शौकीन थी। नानवेज की खुश्बू चारों ओर फैल रही थी।


वह एक प्लेट में सलाद डालकर अलग बैठ गई, तभी बाॅस उसकी तरफ आते दिखे। वे उसके कुछ ज्यादा ही
करीब आकर बोले
‘‘क्यों शुचि मटन चिकन कुछ नहीं लोगी, तुम्हें तो बेहद पसंद है।’’
‘‘नहीं,  आज मेरी मम्मी का फास्ट है।’’
‘‘तो तुम्हारा तो नहीं है, तुम तो ले लो।’’
‘‘नहीं, मैं भी सोमवार को
नहीं खाती।
’’ उसने जवाब दिया
बाॅस ने चिकन की टाॅंग उठाकर खाना शुरू कर दिया पर उनकी नजरें तो शुचि पर ही
गढ़ी थी मानों वह उसे चिकन समझ रहे थे और मौका मिलते ही उसे भी………………।
लंच खत्म करने के बाद बाॅस ने उसे घर छोड़ दिया व स्वयं भी घर चले गये। अब शुचि
को लगने लगा था कि बाॅस उसे रीना से ज्यादा तवज्जो दे रहे थे। रीना को छोड़ उनका
पूरा ध्यान अब शुचि पर ही था। शुचि पछता रही थी
, कि उसने व्यर्थ ही रीना की परेशानी अपने ऊपर ले ली।


अब बाॅस हमेशा उसे ही बुलाते और किसी भी मीटिंग में जाना हो तो शुचि ही साथ
होती। रीना अब काफी तनाव रहित हो चुकी थी
, परन्तु शुचि वह तो स्वयं अपने लिए गड्ढा खोद रही थी,
लेकिन वह भी क्या करती उसे
मजबूरन सब कुछ सहन करना पड रहा था।
आज बाॅस ने उसे अपने रूम में बुलाया और मोहक मुस्कान के साथ उससे बोले,
‘‘शुचि तुम्हारा प्रमोशन हो
गया है।
’’
                वह बोली ‘‘और किसका?’’
 ‘‘सिर्फ तुम्हारा।’’ तो बाॅस ने कहा।
अरे! रीना तो उससे सीनियर होने के साथ, ज्यादा काबिल भी है, फिर उसका क्यों नहीं हुआ? पर वह रीना का नाम चाहकर  भी नही ले पाई थी।
फिर बाॅस बोले ‘‘आज तुम्हारे इस प्रमोशन की पार्टी औरमरेस्टोरेन्ट में रखी है। मैंने सब बुकिंग करवा दी है।’’
अब वह क्या करे, उससे बिना पूछे उसके लिए कोई भी निर्णय लेना गलत है। फिर भी  कुछ कह नही पाई क्योंकि वह बाॅस को नाराज करके
यह जाॅब नही छोडना चाहती । उसे यह नौकरी करना उसकी मजबूरी भी तो था। वह इस जाब को
छोड़ भी तो नहीं सकती थी
, क्योंकि पापा की प्राइवेट जाॅब से भाई-बहन की पढ़ाई होना मुश्किल थी और माॅं,
उनकी दवायें कहाॅं से आयेगी।
अगर वह सहयोग नही करेगी। अब नौकरी छोड दी
, तो घर में कई समस्यायंे मुॅह उठा लेगी।
वह कुछ नहीं बोली और काम में व्यस्त हो गई।

4 बजे के बाद आफिस ब्वाय ने फिर आकर कहा ‘‘मैडम बाॅस बुला रहे हैं।’’
वह उठी और बुझे व मरे कदमों से बाॅस के कमरे की ओर चल दी। वह सोंचते हुए कि आज
किस प्रकार इस परेशानी से बच सकती है या फिर वह किस प्रकार वह उनके चंगुल से निकल
सकती है। इसी उधेड़ बुन में वह बाॅस के कमरे तक जा पहुॅंची। 





वे उसे देखकर अपनी मुस्कान पर काबू ना रख सके, मानांे!! आज उनकी मन की मुराद पूरी होने वाली है।




कहानी -आखिर कब तक


उन्होंने उठते हुए कहा, ‘‘शुचि तुम आ गई। चलो, जल्दी करो। वह चाह कर भी उन्हे मना न कर सकी थी। 
वह कार में आज पीछे वाली सीट पर बैठी थी। बराबर में बाॅस बैठे थे। आगे ड्राइवर
शान्त भाव से कार ड्राइव कर रहा था। वह सोचने लगी कि यह पुरूष किसी भी स्त्री को
देख भंवरे की तरह उसके ऊपर तब तक मंडराता रहता है।
जब तक उसका रसपान ना कर ले, भले ही कितने भी फूलों का रसोपान  कर
चुका हो
, फिर भी भंवरे का मन
क्यों नहीं भरता।वह हर कली का रस
क्यों लेना चाहता हैं। हर फूल पर भॅवरे की तरह रसास्वादन करते हुए से।
यह बाॅस भी तो किसी भॅवरे से किसी भी तरह कम नहीं लगते। वह तो उसे भी सिर्फ तब
तक ही तवज्जों दे रहे हैं
,जब तक वह उनकी बातों में नहीं आ जाती।
फिर उन्हें कोई अन्य मिल जायेगी, और वे उस पर डोरे डालने शुरू कर देगे। आज उसने सोच रखा था,
कि सर को पहल तो करने दो,
फिर वह ऐसा कदम उठायेगी,
कि साॅंप भी मर जाये और लाठी
भी न टूटे।
होटल औरम आ चुका था। ड्राइवर ने आकर कार का गेट खोल दिया। वह बाहर निकल आई।
गेट पर खड़े दरबान ने सिर झुकाकर उसका स्वागत किया।
वह अन्दर की ओर बढ़ी, बाॅस भी साथ ही थे। वहाॅ जाकर देखा पूरा हाल फूलों से महक रहा था।
बाॅस उसे हाॅल से रेस्टोरेन्ट की ओर ले गये वहाॅ सिर्फ एक टेबल दो चेयर थीं।
अन्य कोई व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था। उसने सर की ओर नजर घुमाकर पूछा,
‘‘क्यों सर, क्या पूरा रेस्टोरेन्ट बुक
कर रखा है।
’’

रिलेटेड –तबादले का सच 

तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘यस, मेरी गर्लफै्रन्ड की प्रमोशन की पार्टी है, कोई मजाक थोड़े ही नही है।’’
वह गर्लफै्रन्ड नाम सुन एकदम सकपका गई। क्या सर उसे अपनी गर्लफ्रैन्ड समझते
हैं
?
‘‘पर सर, आपकी तो शादी हो
चुकी है। तो क्या ऐसे में आपको गर्लफ्रैन्ड रखना शोभा देता है
?’’ जब उससे रहा न गया तो आखिर
उसने पूछ ही लिया।
‘‘सर बोले,‘‘शादी हो जाना और गर्लफ्रैन्ड रखना, दोनांे अलग चीजंे हैं। शादी होना,, एक जबरदस्ती का काम भी तो हो सकता है।’’
‘‘पर सर, पहले तो आप रीना को
लाइक करते थे।
’’ उसने पूछा।
‘‘उस समय या तो मैं गलत था या फिर वह एक नंबर की बेवकूफ, वैसे  अगर
वह मेरे साथ रहती
, तो दूध मलाई खाती। अब एक कोने में हो गई है।’’ सर ने जवाब दिया।
सच में उसने जब से उसने सर का कहना मानना शुरू किया तब से तो उसके दिन ही बदल
गये हैं। हालाॅंकि वह बेहद टेलेन्टिड थी फिर भी उसे लगा कि जाॅब के लिए समझौते
करना कहाॅ तक उचित है । आज के दौर में किसी भी जगह कोई भी काम करने पर कुछ न कुछ
समझौते करने ही पड़ते हैं
, लेकिन वह कभी भी अपने शरीर के साथ समझौता नही करेगी।

दूसरों की नजर में गिरने से पहले वह खुद की नजर में गिर जायेगी और खुद की नजर
में गिर कर जीना मन में एक वितृष्णा का भाव पैदा कर देगा। जिससे वह जीते जी मरे के
समान हो जायेगी।
वह सोच रही थी, कि अगर आज सर ने कुछ गलत किया या करने की कोशिश की तो वह किस प्रकार उस स्थिति
से कैसे उबरेगी।
‘‘आप किस चिन्ता में पड़ गईं, चलो चलकर बैठते हैं ।’’ सर ने कहा और एक चेयर आगे खींच कर उस पर बैठने का उसे निमंत्रण दिया। वह बैठ
गई तो सर भी उसके सामने वाली सीट पर बैठ गये।
‘‘शुचि तुम बहुत खूबसूरत हो, तुम्हारी आॅखांे में कमाल की कशिश है, एक बार कोई इनमें झाॅंक ले, तो वहीं पर घर ही बसा ले, वो भी जिन्दगी भर के लिए।’’ बाॅस ने अपनी बातों मंे उसे फॅसाना शुरू कर दिया
था।
क्योंकि किसी भी लडकी की पहली कमजोरी उसकी खूबसूरती की झूठी या सच्ची तारीफ
पाना ही होता है।
‘‘क्या ऐसा है??’’
‘‘हाॅं ऐसा ही है।’’
‘‘तो आप मत झाॅंकिये इन आॅंखों में।’’
‘‘तुम्हारी नशीली आॅंखें नशा सा पैदा कर रही हैं, मैं तो सच में डूब जाऊंगा इनमें।’’
‘‘तभी तो मैंने कहा मत झांकिये इनमें।’’
‘‘शुचि तुम बहुत अच्छी हो, बेहद अच्छी।’’
‘‘कैसे जाना।’’
‘‘इतनी उम्र हो गई है, इतनी पहचान तो रखता ही हूॅं, लेकिन इतना अच्छा भी नहीं होना चाहिए।’’
 वह उन्हें अपनी बातों में उलझा कर,
किसी तरह वहां से निकलने की
तरकीब सोच रही थी। अन्यथा आज तो उसे अपना बचना असंभव ही लग रहा था।
‘‘सर! अगर मैं इतनी ही अच्छी हूॅं और आप मानते भी हैं ऐसा, तो आप मुझसे शादी कर लो न,
जिन्दगी भर साथ निभाऊंगी।’’ 
‘‘शादी वह कैसे, हिन्दुओं में शादी, वह भी दूसरी, बड़ी मुश्किल है उसमें, पहले तलाक, फिर शादी, बहुत लम्बा प्रोसीजर है, फिर उसके बाद बच्चों का जीवन बरबाद हो जायेगा सो अलग।’’
‘‘बिल्कुल सच कह रहे हैं आप, बच्चों का जीवन सबसे ज्यादा मायने रखता है। वैसे आपकी एक बेटी मेरे ही काॅलेज
में पढ़ती थी शायद।
’’
 वे चैंके यह मेरी बेटी को भी जानती
है। उन्होंने एक गहरी उसांस ली।
‘‘हाॅं वह तो ज्यादा पढ़ी ही नहीं, उसने पढ़ाई के दौरान, काॅलेज में ही एक लड़के को चुनकर उससे शादी कर ली थी’’
‘‘आपकी बेटी की शादी हो गई, तब तो आप मेरे पापा की उम्र के हुए।’’
‘‘नहीं शुचि मैं बहुत तन्हाॅ हूॅं, मैं तुम्हें चाहने लगा हूॅं, प्यार करता हूॅं तुमसे, बेइन्तेहा मोहब्बत।’’
वह उठी बाहर जाने को, लेकिन सर ने हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचना चाहा।
 वह बोली, ‘‘सर आपकी बेटी मेरी मामी है, मेरे मामा से ही उनकी शादी हुई है।’’
अब सर भौचक्क से खड़े हो गये, उनके सपनों  पर कुठरा घात हो गया था। पानी पड़ गया था। शुचि उठकर बाहर आ गई
उसने एक गहरी सांस ली थी
, खुली हवा में।

सीमा असीम 


लेखिका
·       
परिचय_
·       
नाम _                सीमा ‘असीम’
·       
पति का
नाम
_   प्रदीप
कुमार सक्सेना
·       
शिक्षा_         एम.ए. संस्कृत( रुहेलखण्ड
विश्वविद्यालय,बरेली)  
·       
अन्य_                      कम्पूटर सॉफ्टवेयर कोर्स
·       
सम्मान
_       
           सारस्वत सम्मान
·       
सम्प्रति
_
            आकाशवाणी में अनाऊँसर   
·      
·       
ईमेल _         seema4094@gmail.com
·       
सृजन _        कविता , कहानी , लेख आदि
·       
प्रकाशन_               एक काव्य संग्रह ‘ये मेरा आसमां’ व कई साझे संकलन
  
प्रकाशित, दो कहानी संकलन व काव्य संग्रह प्रकाशनार्थ प्रकाशक के पास
  इसके
साथ ही राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में नियमित रूप से कहानी कविता लेख आदि प्रकाशित परिकथा
,कादम्बिनी ,समाज कल्याण , लहक , मधुराकर , करुणावती साहित्यधारा , दैनिक जागरण .,
अमर उजाला , रूबरू दुनिया , आधुनिक साहित्य आदि आदि आइनेक्सट के समपाद्कीय पेज पर
लेख ..

·       
आकाशवाणी,
दूरदर्शन पर कविता कहानी व परिचर्चा में सहभागिता और साहित्यिक गोष्ठी में जाना
….  

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