अफसर महिमा- व्यंग

0
अफसर महिमा -व्यंग

विष्णु लोक में नारायण भगवान अनमने ढंग से बैठे हैं. उन्हें बड़ी बेचैनी हो रही है. वे नारदजी की प्रतीक्षा बेसब्री से कर रहे हैं. लक्ष्मीजी आती हैं और उन्हें चिंता-मग्न देखकर पूछ बैठती हैं-
 ” क्या हुआ भगवन! आप बड़े चिंतित नजर आ रहे हैं?“
भगवान उत्तर देते हैं- ” हाँ, प्रिये! मुझे चिंता हो रही है. काफी दिन हो गए, नारद नहीं आए. मैं उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहा हूँ.“
  तभी वीणा लिये नारदजी का प्रवेश . वे भगवान के पास आकर बैठ जाते हैं.
  नारदजी भी खुश  नजर नहीं आ रहे हैं जैसाकि अक्सर वे प्रसन्न मुद्रा में दिखते थे.
                         

                         ( व्यंग्य: अफसर महिमा )…….2

 ” आओ नारद! मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था. मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी. तुम्हें पृथ्वी लोक में इतने दिन कैसे लगे?“- भगवान ने पूछा तो नारद बुदबुदाने लगे-
  ” ओम जय लक्ष्मी मैया, बढ़ा दो फीस, भर दो जेब हमारी“……..
” यह क्या नारद? तुम क्या कह रहे हो? मैं तुम्हारे मुख से यह क्या सुन रहा हूँ?“- भगवान को नारदजी के मुख से निकले ये शब्द आष्चर्यचकित कर देते हैं. नारदजी अभी भी बुदबुदा रहे हैं-
  ” भूख-प्यास मिटती नहीं, इच्छाएँ बढ़ती जातीं.
  टी. वी. फ्रिज से काम न चलता, घर में जरूरी कंप्यूटरधारी!“
” नारद, हे नारद! होश  में आओ. यह तुम क्या कह रहे हो? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है“- भगवान ने टोका तो नारदजी सचेत हुए-
 ” क्षमा करें भगवन! मैं भूल ही गया था कि मैं पृथ्वी लोक में नहीं , बल्कि विष्णु- लोक में आ गया हूँ.“
 ” कोई बात नहीं. लेकिन तुम जो अभी कह रहे थे, उसका अर्थ मैं समझा नहीं. तुम कुछ अलग तरह की बात कर रहे थे“- नारायण ने पूछा तो नारद ने दोबारा क्षमा माँगते हुए कहा-
 ” अपराध क्षमा हो भगवन! मैं आपकी आरती गाना भूल गया था.“
 ” यह सब कैसे हुआ? मुझे विस्तार से समझाओ नारद!“- भगवान ने शेषनाग की शय्या पर आराम से लेटते हुए कहा. लक्ष्मीजी उनके पैर दबाने लगीं.
 ” बताता हूँ प्रभु! बताता हूँ!“- नारदजी बोले.
                               2

                                    ( व्यंग्य: अफसर महिमा )……3

 ” हाँ, तो सुनो प्रभु! इस बार मैं पृथ्वी लोक गया तो वहाँ का नजारा बिल्कुल बदला  हुआ था. इसबार मैं करीब-करीब सभी देशों  में गया. पर आपकी जो जन्मभूमि थी, मेरा मतलब, आपने जहाँ अवतार लिए व पापियों का नाश  किया, उसकी बात ही कुछ और थी.“
 ” नारद, तुमने मेरी जन्मभूमि को थी   क्यों कहा? क्या अब वह मेरी नहीं है?“
” क्षमा करें प्रभु! यह भी बताऊँगा. आपने जहाँ जन्म लिया, अवतार लिए, वहाँ अब दूसरे देवताओं की पूजा प्रचलित हो गयी है.“- नारद ने स्पष्ट किया.
 ” दूसरे देवताओं की पूजा? क्या इन्द्र और वरूण की पूजा होने लगी है?“- भगवान ने पूछा तो नारदजी को हँसी आ गई.
 ” इन्द्र या वरूण? ये तो पौराणिक देवता हैं प्रभु! अब इनका पृथ्वी लोक में कोई काम नहीं.“- नारद बोले.
 ” क्या पृथ्वी लोक में कोई काम नहीं? इन्द्र तो वर्षा करवाते हैं, वर्षा के देवता हैं और वरूण समुद्र के देवता! क्या पृथ्वीवासियों को इनका महत्त्व नहीं मालूम? अगर इन्द्र नाराज हो गये तो वर्षा……“ भगवान देवताओं का महत्त्व बताने लगे तो नारदजी ने उन्हें बीच में टोक दिया.
 ” भगवन! मैं फिर आपसे क्षमा चाहता हूँ. ये सब पुराने देवता हो गये हैं और अब तो पृथ्वीवासी इनकी बिल्कुल परवाह नहीं करते. ना ही उन्हें इन देवताओं के कोप का भय रह गया है.“
 ” वह कैसे?“- भगवान की उत्सुकता बढ़ जाती है.
 ” मैंने कहा न कि इन्द्र और वरूण आदि देवता पुराने हो गये हैं. उनकी जगह नये भगवानों ने ले ली है. वे काफी आधुनिक देवता हैं और उन्हें प्रसन्न करना ज्यादा जरूरी है“- नारदजी बोले.

                           3

                                ( व्यंग्य: अफसर महिमा )……..4

 – ” जरा मैं भी तो सुनूँ कि आधुनिक देवता कौन हैं?“- भगवान ने कहा.
 ” सुनो भगवन! पृथ्वीवासी अब आधुनिक देवताओं को पूजने लगे हैं. ये काफी माॅडर्न भगवान हैं और उनकी शक्तियाँ भी पौराणिक देवताओं से ज्यादा बढ़ी-चढ़ी हैं जिसे ष्पावर’ कहते हैं. आजकल इन देवताओं की ष्पावर’ इतनी बढ़ गयी है कि लोग भयभीत रहते हैं. वे इन देवताओं की पावर से घबराते हैं भगवन्! और किसी तरह की मुसीबत मोल लेना नहीं चाहते“. नारद बोलते जा रहे थे कि भगवान ने टोका-
 ” नारद ! तुम जरा स्पष्ट और सरल भाषा में मुझे बताओ, तुम्हारी भाषा मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है.“
” ओह! मैं कुछ भूल गया था कि आप अभी आधुनिक यानि मॉडर्न ’ यानि कि अंग्रेजी यानि कि ‘ इंग्लिष’ भाषा से अनजान हैं. यही समस्या पृथ्वीवासियों विषेषकर भारतवासियों की है कि वे मॉडर्न  लैंगवेज’ समझते नहीं और जो यह लैंग्वेज नहीं समझते वे बेचारे पीछे रह जाते हैं. जिंदगी की दौड़ में पिछड़ जाते हैं“- नारदजी का स्वर जरा तेज हो गया.
” हे नारद! मैं तुमसे विनती करता हूँ कि मेरे अज्ञान का मजाक मत उड़ाओ. मुझे मेरी भाषा में ही समझाओ“- भगवान ने कहा।
 ” अपराध क्षमा हो प्रभु! आदत से मजबूर हूँ. क्या करूँ संगति का असर है. मैं इतने दिनों तक पृथ्वीलोक में रहा तो विष्णुलोक की भाषा ही भूल गया. यह भी भूल गया कि आप भी आधुनिक भाषा से अनजान हैं. ऐसा ही भारतवासियों के साथ होता है. वे जब अपना देष छोड़कर विदेश  चले जाते हैं तो अपनी भाषा, संस्कृति भूल जाते हैं और जिस देष में जाते हैं वहीं का रहन-सहन, भाषा, खान-पान, संस्कृति सब अपनाने लगते हैं. भाषा की समस्या उनके साथ भी आती है अतः इंग्लिश ’ सीखना उनके लिए अनिवार्य है. उनका अपनी भाषा से काम नहीं चलता. विदेषों में उनकी भाषा कौन जानता है? इंग्लिश ’ आधुनिक भाषा है मतलब मॉडर्न  लैंग्विज’ भी. साथ ही सबसे बड़ी बात यह है कि यह इंटरनेषनल लैंग्विेज है यानि कि अंतर्राष्ट्रीय भाषा’.- नारद थोड़ी देर रूकते हैं तो भगवान के माथे पर बल पड़ने लगते हैं.
                              4

                                  ( व्यंग्य: अफसर महिमा )……5

” नारद! तुम कुछ बहकने लगते हो. मैं तुमसे देवताओं के विषय में पूछ रहा था और तुमने नयी चर्चा छेड़ दी, वह भी ष् भाषा की समस्या’. तुम्हारी भाषा में प्रॉब्लम  आॅफ लैंग्विज’- भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा.
 नारदजी को आष्चर्य हुआ कि उन्होंने प्रॉब्लम ’ शब्द का प्रयोग कैसे किया? नारद को यूँ आष्चर्यचकित देखकर भगवान और मुस्कुराने लगे.
 ” तुम अपनी बात कहो नारद! मेरे लिए कुछ भी अनजाना नहीं है, मैं अंतर्यामी हूँ“- भगवान अपना चक्र घुमाने लगे.
 ” क्षमा प्रभु, क्षमा!“- नारद ने सिर झुकाकर कहा.
 ” हाँ, यह मुद्दा छोड़ देना ही उचित है क्योंकि भाषा की समस्या अब अंतर्राष्ट्रीय बहस का मुद्दा है और अपना उद्देष्य देवताओं की समस्या से है यानि कि प्रॉब्लम  आॅफ गाॅड’ से- नारद ने भी मुस्कुराते हुए उत्तर दिया.
” लेकिन भाषा की समस्या तो आएगी ही….. खैर यह तो अब संसदों और विधान सभाओं की समस्या है जहाँ इसपर बहस होती रहती है पर परिणाम कुछ नहीं निकलता“- नारद बोले.
 ” हाँ नारद! तुम अब मुझे मेरी जन्मभूमि के नये माॅडर्न देवताओं के बारे में बताओ और यह भी बताओ कि मेरी जन्मभूमि ष्थी’ क्या अब नहीं है?“- भगवान ने पूछा.
” बताता हूँ भगवन्! मैं आपको बिल्कुल आँखों  देखी’ और कानों  सुनी’ ही बताऊँगा ताकि आपको भी विष्वास हो जाए.
 ” सुनो भगवन्! मैंने बताया न कि इस बार नजारा बिल्कुल बदला हुआ था. मैं पृथ्वीलोक गया तो एक साधारण आदमी के घर रूका. उस वक्त वह पूजा कर रहा था.

                              5

                                  ( व्यंग्य: अफसर महिमा )……6

मुझे आष्चर्य तो तब हुआ, जब मैंने पूजा-स्थल का निरीक्षण किया. मुझे घोर आष्चर्य हुआ कि वहाँ नये- नये देवताओं की तस्वीरें लगी हुईं थीं. जैसाकि पहले होता था देवी-देवता की मूर्तियाँ या तस्वीरों की लोग पूजा करते थे और आरती गाते थे, वहाँ उसका स्वरूप बदला हुआ था. वह व्यक्ति ‘ अफसर’ की पूजा कर रहा था.“
 ” अफसर की पूजा ? यह अफसर क्या बला है?“- भगवान ने पूछा.
 ” अफसर ही तो वह नया देवता है जिसे आजकल प्रसन्न करना जरूरी है. और लोग अफसर को ही अपना आदर्ष मानते हैं उसी की पूजा करते हैं. अगर अफसर नाराज हो गया तो उसकी रोजी- रोटी छिन जाएगी, यह भय लोगों को सताता है. अफसर, नेता, विभिन्न अधिकारी वे व्यक्ति हैं जो लोगों के देवता हैं. केवल ये ही नहीं बल्कि और भी हैं उनके नाम गिनाऊँ क्या?
 ” हाँ-हाँ कहो! मैं भी जानना चाहता हूँ कि वे कौन-से नये देवता हैं?- भगवान बोले.
” ये विभ्न्नि व्यक्ति हैं- कस्टम, शिक्षा, जिला, इन्कम टैक्स,जल-निगम, नगर-निगम, दूरदर्शन , जिलाधिकारी वगैरा- वगैरा……… इनकी लाइन बहुत लंबी है कहाँ तक गिनाऊँ? वह व्यक्ति इन्हीं देवताओं की तस्वीरों की पूजा कर रहा था और भगवन् उसने प्रसाद के रूप में ‘ नोटों’ की गड्डियाँ रख रखी थीं“- नारदजी ने कहा.
 ” आष्चर्य है! लेकिन यह तो बताओ कि उसने नोटों की गड्डियाँ क्यों रखी थीं, क्या फल-फूल, मिष्ठान्न का अर्पण नहीं किया जाता?“- भगवान की उत्सुकता बढ़ गई थी.
 ” नहीं भगवन्! आजकल इन चीजों का प्रसाद नहीं लगाया जाता. मुझे आपकी बात पर हँसी भी आती है. फल-फूल, मिष्ठान्न…… हा……हा…..हा!“- नारद जोरदार ठहाके लगाते हैं.
” ये सब बहुत छोटी चीजें हैं प्रभु! भला इनसे इनका पेट भरेगा? उनका पेट बहुत बड़ा हो गया है और उसे भरने के लिए फल-फूल, मिष्ठान्न की नहीं बल्कि नोट रूपीप्रसाद  की जरूरत पड़ती है-नारद बोले.
 ” भला कागज के नोटों से इनका पेट कैसे भरता है मैं समझा नहीं?श्- भगवान ने पूछा.
                             6

                                   ( व्यंग्य: अफसर महिमा )……7

 ” यही तो राज है. नोटों से आजकल क्या नहीं मिलता.बस आपकी जेब भरी होनी चाहिए. पैसे फेंको और तमाषा देखो- नारद ने साँस ली.
 ”यह तो कुछ भी नहीं भगवन्! उसने जो आरती गायी वह और भी विचित्र थी- नारद ने कहा तो भगवान बोले.
 ” जरा मैं भी सुनूँ, वह क्या गा रहा था?“
 ” सुनाता हूँ प्रभु! सुनो! वह गा रहा था “-
” ओम् जय अफसर महिमा,
 किस अफसर की शरण में जाऊँ
बैठे हैं सारे महिमाधारी!
 ओम् जय…………
ये है कस्टम अधिकारी
ज्यों बैठा हो कोई फनधारी.
महिम  है इसकी अपार
सोना, हेरोइन आसानी से पार.
ओम् जय………..
ये है दूरदर्शन  अधिकारी
साथ में असिस्टेंट पुजारी.
लेखक, निर्माता सब हैं फक्कड़
                   
खाली है बैंक खाता.
ओम् जय……….
ये है जिला अधिकारी
कितने चक्कर लगाये
शरण तुम्हारी आये.
पर आसानी से मिलता नहीं कोई.
ओम् जय…………..
ये है नेता का बंगला
फाटक पर बैठा रिसेप्षनिस्ट
पहले जेबें भरता, तब
अंदर जाने देता.
ओम् जय…………

 ( व्यंग्य: अफसर महिमा )…….8

” भगवन् यह तो विभिन्न देवताओं की आरतियाँ हैं. उसने एक और आरती गायी थी जो सभी पर बिल्कुल फिट बैठती है- नारद बोले.
”वह भी सुना डालोश्- भगवान बोले.
” काष कि मैं अपनी वीणा की जगह टेप  रिकाॅर्डर मूवी कैमरा  ले जाता तो यह काम आसान हो जाता. यह वीणा किसी काम की नहीं- नारदजी ने मायूसी से उत्तर दिया.
” निराष मत हो नारद! तुम्हें जैसी याद हो वही सुना दो- भगवान ने हिम्मत बढ़ाते हुए कहा
                              8

                                   ( व्यंग्य: अफसर महिमा )…….9

.
” अब क्या बताऊँ भगवन्! लोग किस कदर पुरानी आरतियाँ भूल चुके हैं और उनकी जगह नयी-नयी आरतियाँ प्रचलित हो गई हैं आप भी सुनिएश्- नारदजी ने आरती सुनानी प्रारंभ की जो घर-घर में प्रचलित हो रही थी-
” ओम् जय अफसर महिमा !स्वामी जय अधिकारी देवा!
किस अफसर को रिझाऊँ,किसको भेंट चढ़ाऊँ?
समझ नहीं आता.
ओम् जय………
दफ्तर के चक्कर लगाता, घर पर फोन मिलाता.
पर कहीं से कोई उत्तर नहीं पाता.
कार में बैठा घूमता, साथ में रहता कुत्ता.
भवनों, स्कूलों का उद्घाटन करता
आम आदमी पास में उसके फटक नहीं पाता.
ओम् जय………..
चमचों की भीड़ है भारी, कार में निकली सवारी.
ज्यों हो कोई मुक्तिदाता.
सूखा, बाढ़,चोरी-चकारी, इन सबसे दूरी भारी
जब भी सूचना इनकी जाती, फाइलों में बंद हो जाती.
ओम् जय………
                            9

                                 ( व्यंग्य: अफसर महिमा )…….10

” ओह! वास्तव में ये नये देवता हैं नारद. लगता है पृथ्वीवासियों को अब मेरी जरूरत महसूस नहीं होती.“
” पहले कितना अच्छा लगता था- विष्णुजी ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा- ” मेरा भक्त मुझे नारायण – नारायण कहकर  पुकारता था और मैं उसकी पुकार पर दौड़ा चला जाता था.
” यही तो मैं कह रहा था भगवन्! इसी कारण मैं भी नारायण जाप भूलकर अफसर महिमा गाने लगा था नारद बोले.
” मुझे आजकल किसी की पुकार भी सुनाई नहीं देती. पहले के भक्त कितने बदल गये है. मुझे अपने भक्तों के कष्ट दूर करने के लिए कितने अवतार लेने पड़े थे, कितनी बार जन्मा था मैं?- भगवान बोले.
”यही तो मैं कह रहा था प्रभु कि पहले जो आपकी जन्मभूमि थी, वह अब नहीं रही. इसीलिए तो मैंने आपसे कहा था- नारद बोले.
” तुम्हारी बात समझ गया हूँ नारद! अब ज्यादा समझाने की आवष्यकता नहीं…….भगवान ने नारद को बीच में टोकते हुए कहा……..” लगता है मुझे अफसर या नेता अवतार लेना पडे़गा- कुछ सोचते हुए भगवान बोले.
” लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि क्या लोगों को  स्वर्ग’ या मोक्ष पाने  की कामना नहीं है? वे क्या परलोक ’ के सुख नहीं चाहते?“- भगवान ने पूछा.
” आप बहुत भोले हैं प्रभु! मैंने आपको बताया न कि पृथ्वी का, पृथ्वी के लोगों का नजरिया बिल्कुल बदल गया है. लोग तो पृथ्वीलोक के सुखों को ही सर्वोपरि मानते हैं और उन्हीं को पाने की कामना करते हैं. मैंने स्वयं एक अफसर को बुदबुदाते हुए सुना था. वह कह रहा था-
” हे भगवान! हो जाए ऐसे विभाग में तबादला,
                              10

                                  ( व्यंग्य: अफसर महिमा )…….11

जहाँ करने को मिले रोज घोटाला-दर- घोटाला!
 घोटाला? यह शब्द  भी मेरे लिए नया है नारद! जरा इसे भी स्पष्ट करना-भगवान बोले.
” आजकल लोग-बाग, बड़े-बड़े अधिकारियों व अफसरों की यही तमन्ना रहती है भगवन्! वे मोप्क्ष प्राप्ति की कामना नहीं करते बल्कि गरीबी रूपी मोक्ष के इच्छुक हैं. वे हर संभव तरीके से अपनी गरीबी दूर करना चाहते हैं और स्वर्गलोक के सुख- भोगों सूरा ,सुंदरी व ऐष्वर्य को पृथ्वी पर ही प्राप्त करना चाहते हैं क्योंकि अब तो ये सब चीजें आसानी से उपलब्ध हैं. बस जरूरत है गड्डियों,नोटरूपी प्रसाद  की, जो उन्हें कोई तगड़ा विभाग मिलने पर प्राप्त हो जाता है. इसीलिए लोग ऐसे विभागों की कामना करते हैं जिसमें करोड़ों रूपयों के घोटाले की संभावना होश्- नारद ने कहा.
” नारद तुमने जो नोटरूपी प्रसाद की बात कही थी, मतलब कि धन. लोगों को धन यानि कि लक्ष्मी की कामना रहती है अर्थात् लोगों की नजरें अब मेरी पत्नी पर है. लक्ष्मी जोकि मेरी अर्धांगिनी है? विष्णुजी को लक्ष्मीजी की चिंता होने लगी. उनके माथे पर बल पड़ने लगे.
” हाँ भगवन्! लोगों की नजरें न केवल आपकी लक्ष्मी पर बल्कि अपने पड़ोस, गाँव व शहर की सुंदर स्त्रियों व बालाओं पर भी है.“
” नारद! तुमने मेरा नाम कैसे लिया? मुझे भी घसीट लियाश्- लक्ष्मीजी जोकि बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थीं, तुनकते हुए बोलीं.
” बहुत लंबी दास्तान है माता! क्षमा करना. यह बात मैं फिर सुनाऊँगा. थक गया हूँ. आज इतना ही. इसकी व्याख्या फिर करूँगा- नारदजी ने लंबी साँस लेते हुए कहा. उन्हें उबासी भी आ रही थी.
” जैसी तुम्हारी मर्जी नारद! फिर सुन लेंगे. इतना ही बहुत है आज- भगवान तंद्रा में लीन होते हुए बोले. लक्ष्मीजी को भी नींद आने लगी थी.

                             11                                       समाप्त .

सुधा गोस्वामी

लेखिका

यह भी पढ़ें ……..

दूरदर्शी दूधवाला 


आपको आपको  व्यंग लेख अफसर महिमा- व्यंग कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

               फोटो क्रेडिट – फ्लिकर .कॉम      

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here