सुई बन , कैंची मत बन……

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सुई बन कैची मत बन
कहते हैं कि माँ की हर बात में शिक्षा होती है | ये कविता आभा जी ने अपनी माँ की शिक्षा के ऊपर ही लिखी है जिसमें वो परिवार को जोड़े रखने के लिए सुई बनने की शिक्षा देती है | ये शिक्षा हम सब के लिए बहुत उपयोगी है |

कविता -सुई बन कैची मत बन 

बचपन में जब कभी 
हम
भाई-बहिन
 
आपस
में झगड़ते थे
 
किसी
भी खिलौने या
 
मनचाही
चीज़ों पर
 
ये
मेरा है
, ये तेरा है 
कहकर
लड़ पड़ते थे
 
हर
छोटी-छोटी बातों में
 
माँ
-माँ कहकर
 
चिल्लाते
थे ……!!
तब घर की परेशानियों से लड़ती 
पैसों
की तंगी से जूझती
 
हमे
बेहतर भविष्य देने की
 
कोशिश
में तत्पर रहती
 
माँ
!!
 
सब
भाई- बहिन में बड़ी होने के नाते
 
मेरा
हाथ पकड़ती
 
कान
खींचती
 
और
वही जाना -पहचाना वाक्य
 
दोहरा
देती ….

सुई
बन
, कैंची मत बन ” ……!!

तब मेरा बालमन 
इस वाक्य के अर्थ से अनभिज्ञ 
इसे माँ की डांट समझ 
सहज ही भूल जाता था 
लेकिन आज !! 
उम्र के इस दौर में 
एक कुशल गृहणी का 
कर्तव्य निभाते हुए 
संयुक्त परिवार को 
एक सूत्र में बांधे हुए 
माँ की डांट में छुपे गूढ़
अर्थ को
 
जान पायी हूँ 
कि रिश्तों को जोड़ना सीखो
, तोड़ना नहीं 
अब जान गयी हूँ कि ! 
कैसे सुई दो टुकड़ों को एक करती है 
और 
कैंची एक टुकड़े को दो टुकड़ों में
बांटती है
…..!!!!!!!

आभा खरे 

लेखिका







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लेखिका परिचय

नाम —- आभा खरे
जन्म —-
५ अप्रैल, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा —-
बी.एस.सी (प्राणी विज्ञान)
सम्प्रति —-
स्वतंत्र लेखन
लखनऊ से प्रकाशित
साहित्य व संस्कृति की त्रेमासिक पत्रिका “ रेवान्त “
में सह संपादिका के रूप में कार्यरत

प्रकाशित कृतियाँ —- ‘
गुलमोहर’, ‘काव्यशाला’, ‘सारांश समय का’, ‘गूँज’
                 
अनुभूति के इन्द्रधनुष’ काव्या’(सभी साझा संकलन)
में
                  रचनाएँ सम्मलित

वेब पत्रिका : १)अभिव्यक्ति अनुभूति
            २)हस्ताक्षर
             में नियमित रचनाओं का प्रकशन

इसके अतिरिक्त
विभिन्न समाचार पत्रों के साहित्यिक परिशिष्ट में रचनाएँ प्रकाशित !!



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