करवाचौथ -पति -पत्नी के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति का विरोध क्यों ?

3
करवाचौथ -पति -पत्नी के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति का विरोध क्यों ?









करवाचौथ आने वाला है , उसके आने की आहट के साथ ही व्हाट्स एप पर चुटकुलों की भरमार हो गयी है | अधिकतर चुटकुले उसे व्यक्ति , त्यौहार या वस्तु पर बनते हैं जो लोकप्रिय होता है | करवाचौथ आज बहुत लोकप्रिय है इसमें कोई शक नहीं है | यूँ तो भारतीय महिलाएं जितनी भी व्रत रखतीं हैं वो सारे पति और बच्चों के लिए ही होते हैं , जो मन्नत वाले व्रत होते हैं वो भी पति और बच्चों के लिए ही होते हैं |




फिर भी खास तौर से सुहाग के लिए रखे जाने वाले व्रतों में तीज व् करवाचौथ का व्रत है | दोनों ही व्रत कठिन माने जाते रहे हैं क्योकि ये निर्जल रखे जाते हैं | दोनों ही व्रतों में पूजा करते समय महिलाएं नए कपडे , जेवर आदि के साथ पूरी तरह श्रृंगार करती हैं … सुहाग के व्रतों में सिंदूर , बिंदी , टीका , मेहँदी , महावर आदि का विशेष महत्व होता है , मान्यता है कि विवाह के बाद स्त्री को करने को मिलता है इसलिए सुहाग के व्रतों में इसका महत्व है | दोनों ही व्रतों में महिलायों की पूरी शाम रसोई में पूजा के लिए बनाये जाने वाले पकवान बनाने में बीतती रही है | जहाँ तक मुझे याद है … करवाचौथ में तो नए कपड़े पहनने का भी विधान नहीं रहा है , हां कपडे साफ़ हों इतना ध्यान रखा जाता था |




करवाचौथ का आधुनिक करवाचौथ के रूप में अवतार फिल्मों के कारण हुआ | जब सलमान खान और ऐश्वर्या राय ने बड़े ही रोमांटिक तरीके से ” चाँद छुपा बादल में ” के साथ इसे मनाया तो युवा पीढ़ी की इस पर नज़र गयी | उसने इसमें रोमांस के तत्व ढूंढ लिए और देखते ही देखते करवाचौथ बेहद लोकप्रिय हो गया | पहले की महिलाओं के लिए जहाँ दिन भर प्यास संभालना मुश्किल था आज पति -पत्नी दोनों इसे उत्साह से कर रहे हैं | कारण साफ है ये प्रेम की अभिव्यक्ति का एक सुनहरा अवसर बन गया |




लोकप्रिय होते ही बुजुर्गों ( यहाँ उम्र से कोई लेना देना नहीं है ) की त्योरियां चढ़ गयी | पति -पत्नी के बीच प्यार ये कैसे संभव है ? और विरोध शुरू हो गया | करवाचौथी औरतों को निशाने पर लिया जाने लगा , उनका व्रत एक प्रेम का नाटक नज़र आने लगा | तरह तरह के चुटकुले बनने लगे |आज जो महिलाएं ४० वर्ष से ऊपर की हैं और वर्षों से इस व्रत को कर रहीं हैं उनका आहत होना स्वाभाविक है , वो इसके विषय में तर्क देती हैं | इन विरोधों और पक्ष के तर्कों से परे युवा पीढ़ी इसे पूरे जोश -खरोश के साथ मना रही है |


दरअसल युवा पीढ़ी हमारे भारतीय सामाज के उस पूर्वाग्रहों से दूर है जहाँ दाम्पत्य व् प्रेम दोनो को अलग -अलग माना जाता रहा है | ये सच है कि माता -पिता ही अपने बच्चों की शादी जोर -शोर से करते हैं फिर उन्हें ही बहु के साथ अपने बेटे के ज्यादा देर रहने पर आपत्ति होने लगती है | बहुत ही जल्दी ‘श्रवण पूत’ को ‘जोरू के गुलाम’ की उपाधि मिल जाती है | मेरी बड़ी बुआ किस्सा सुनाया करती थी कि विवाह के दो -चार महीने बाद उन्होंने फूफाजी के मांगने पर अपने हाथ से पानी दे दिया था तो घर की औरतें बातें -बनाने लगीं , ” देखो , कैसे है अपने पति को अपने हाथ से पानी दे दिया | ” उस समाज में ये स्वीकार नहीं था कि पत्नी अपने पति को सबके सामने अपने हाथ से पानी दे , अलबत्ता आधी रात को पति के कमरे में जाने और उजेला होने से पहले लौटने की स्वतंत्रता उसे थी |




ऐसा ही एक किस्सा श्रीमती मिश्रा सुनाती हैं | वो बताती हैं कि जब वो छोटी थीं तो उनकी एक रिश्तेदार ( रिश्ते के दादी -बाबा) पति -पत्नी आये जिनकी उम्र ७० वर्ष से ऊपर थी | पहले जब भी वो आते तो दादी उसके कमरे में व् बाबा बैठक में सोते थे | उस बार उसकी वार्षिक परीक्षा थीं , उसे देर रात तक पढना था तो दादी का बिस्तर भी बैठक में लगा दिया |




दादी जैसे ही बैठक में सोने गयीं उलटे पाँव वापस आ कर बोली , ” अरे बिटिया ये का करा , उनके संग थोड़ी न सोइए |” उसने दादी की शंका का समाधान करते हुए कहा , ” दादी कमरा वही है पर बेड अलग हैं , यहाँ लाइट जलेगी , मुझे पढना है |” दादी किसी नयी नवेली दुल्हन की तरह लजाते हुए बोली , ना रे ना बिटिया , तुम्हरे बाबा के साथ ना सोइए , हमका तो लाज आवत है , तुम लाइट जलाय के पढो , हम का का है , मुँह को तनिक पल्ला डारि के सो जैहेये |” श्रीमती मिश्रा आज भी जब ये किस्सा सुनाती हैं तो उनका हँसते बुरा हाल हो जाता है , वह साथ में बताना नहीं भूलती कि दादी बाबा की ९ संताने हैं फिर भी वोप्रेम को सहजता से स्वीकार नहीं करते और ऐसे नाटकीय दिखावे करते हैं |




कारण स्पष्ट है उस समय पति -पत्नी का रिश्ता कर्तव्य का रिश्ता माना जाता था , उनके बीच प्रेम भी होता है इसे सहजता से स्वीकार नहीं किया जाता था | औरते घर के काम करें , व्रत उपवास करें … पर प्रेम चाहे वो पति से ही क्यों न हो उसकी अभिव्यक्ति वर्जित थी | यही वो दौर था जब साहब बीबी और गुलाम टाइप की फिल्में बनती थीं … जहाँ घरवाली के होते भी बाहर वाली का आकर्षण बना रहता था | पत्नी और प्रेमिका में स्पष्ट विभाजन था |






आज पत्नी और प्रेमिका की विभाजक रेखा ध्वस्त हो गयी है | इसका कारण जीवन शैली में बदलाव भी है | आज तेजी से भागती -दौड़ती जिन्दगी में पति पत्नी के पास एक दूसरे को देने का पर्याप्त वक्त नहीं होता , वही इन्टरनेट ने उनके पास एक दूसरे को धोखा देने का साधन भी बस एक क्लिक दूर कर दिया है | ऐसे में युवा पीढ़ी प्रेम के इज़हार के किसी अवसर को खोना नहीं चाहती है | करवाचौथ परंपरा व् अभिव्यक्ति के एक फ्यूजन के तौर पर आया और उन्होंने झपट कर उसे अपना लिया |


यहाँ ध्यान देने की बात है कि अभी भी ये व्रत निर्जल ही रहा जाता है और पूजा का भी वही विधान है | पुराने जोड़े इस त्यौहार को अभी वैसे ही मना रहे हैं |बस नए जोड़े इसमें गिफ्ट का आदान -प्रदान व् रात को पूजा के बाद होटल में डिनर भी जोड़ देते हैं | देखा जाए तो भाई -बहन के बीच रक्षा बंधन में भी गिफ्ट का आदान -प्रदान होता है उस पर उंगुली नहीं उठती | जबकि पति -पत्नी के बीच कई अवसरों पर गिफ्ट का आदान होता ही रहता है , इसमें भी अगर वो अपनी ख़ुशी से देते लेते हैं तो हर्ज ही क्या है ? जरूर दें ही ऐसा कोई रिवाज भी नहीं है |


करवाचौथ पति -पत्नी के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति का त्यौहार है और नयी पीढ़ी इस परंपरा को विशुद्ध धर्मिक रूप देने के स्थान पर थोडा अपने तरीके से मना रही है तो इसमें हर्ज ही क्या है |आखिर ये त्यौहार दाम्पत्य प्रेम को सुरक्षित रखने के लिए ही तो बनाया गया है | ख़ुशी की बात ये हैं कि आज की पीढ़ी भी लिव इन के इस दौर में दाम्पत्य प्रेम को बरक़रार रखना चाहती है |




अगर आप भी पति -पत्नी के बीच प्रेम की इस अभिव्यक्ति का विरोध कर रहे तो जरा स्वयं से ही प्रश्न करिए … आखिर इसमें गलत क्या है ? हम भी तो यही चाहते हैं की हमारी परंपरा बनी रहे | करवाचौथ भले ही निशाने पर हो पर ऐसा कौन सा त्यौहार बचा है जो आज भी बिलकुल पुराने तरीके से मनाया जाता है | रात , चलनी और चाँद की परम्परा के साथ दाम्पत्य प्रेम की इस आधुनिक अभिव्यक्ति इसे और खूबसूरत बना रही है और ग्राह्य भी |


वंदना बाजपेयी




आपको लेख “करवाचौथ -पति -पत्नी के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति का विरोध क्यों ?”कैसा लगा ? कृपया अपने विचार अवश्य रखे |


यह भी पढ़ें …


करवाचौथ के बहाने एक विमर्श


करवाचौथ और बायना

करवाचौथ -एक चिंतन

प्यार का चाँद

filed under- Indian festival, karvachauth, love, karva chauth and moon

3 COMMENTS

  1. अच्छा आलेख …
    ज़रूरी नहीं परम्परा बल्कि त्योहार समूह की भावना, आनंद और समाज को जोड़े रखने की परम्परा भी रही होगी किसी समय में … मुझे जहाँ तक हो सके इस परम्परा को सहेज के रखने में कोई बुराई नहीं नज़र आती अन्यथा जीवन जीना बस साँस लेना ही है और किसी भी चीज़ की ज़रूरत महि भोजन और साँसों का प्रवाह भर है जीवन …

  2. सामाजिक कुंठा को प्रकाश में लाता एक अच्छा लेख। समसामयिक हैना जरूरी है। समयानुसार अपनेआप में बदलाव कोई पाप नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here