क्या हम तैयार है?

डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई

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      हिंदी की दशा कैसी है, किस दिशा में जा रही है, क्या हो रहा है, क्या नही हो रहा है, सरकार क्या कर रही है..आदि-आदि पर हिंदी दिवस आने से कुछ पहले और कुछ बाद तक चर्चा चलती रहती है। इस रोदन, गायन-चर्चा से अच्छा क्या यह नहीं होगा कि हिंदी के लिए कुछ सार्थक  करने का जरिया हम स्वयं ही बनें।
        पढ़ना-पढ़ाना एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हम सभी दो-चार होते हैं। कोई विद्यालय-महाविद्यालय में पढ़ाता है, तो कोई घर पर बच्चों को ट्यूशन देते हैं, कोचिंग का व्यापार भी खूब फलफूल रहा है, अपने बच्चों को भी सभी माता-पिता पढ़ाते ही हैं, तो इस प्रक्रिया में हम हिंदी के लिए कुछ करने के लिए सोचें? सचमुच हिंदी से प्रेम करते हैं, तो कुछ छोटे-छोटे सार्थक कदम उठाने पर अवश्य चिंतन किया जा सकता है।

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         आइए , विचार करते हैं कि हम क्या और कैसे इसकी शुरुआत कर सकते हैं? 
प्राथमिक, माध्यमिक विद्यालयों में तो पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य इतर गतिविधियों के रूप में सामान्य ज्ञान, वाद-विवाद, निबंध, कहानी लेखन प्रतियोगिताएँ, कविता पाठ, श्लोक ज्ञान प्रतियोगिताएँ होती ही हैं, उच्च माध्यमिक विद्यालयों, महाविद्यालयों में विद्यालय-महाविद्यालय पत्रिकाएँ भी निकाली जाती हैं। यदि हम सभी अपने घर के आसपास, मोहल्ले के पढ़ने वाले छोटे बच्चों को  साथ लेकर किसी पर्व-त्योहार, दिवस विशेष पर मोहल्ले-पड़ोस वालों के साथ मिल कर समय-समय पर कुछ आयोजन करें जिसमें सामान्य ज्ञान, किसी विषय वाद-विवाद प्रतियोगिता हो, सुलेख प्रतियोगिता हो, विषय देकर आधा, एक-डेढ़ मिनट बोलने का अवसर ढें, छोटे-छोटे नाटक हों, कृष्णजन्माष्टमी, दशहरे-दीवाली पर रामलीला, कृष्णलीला जैसे छोटे -छोटे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हों, कविताएँ, दोहे-चौपाईंयाँ याद करवाकर प्रतियोगिताएँ हों

भाषा को समृद्ध करने का उपाय साहित्य विरोध से नहीं

.ये छोटे-छोटे ऐसे सार्थक कार्यक्रम हैं जो हम अपने घर के आसपास, मोहल्लेवालों, मोहल्ला समिति के सहयोग से सहज ही आयोजित कर सकते हैं और अपने बच्चों में हिंदी के प्रति प्रेम और सृजन के बीज बोकर उनकी इस क्षमट्स को विकसित करने में सहज ही योगदान दे सकते हैं। पुरस्कार स्वरूप छोटी-छोटी पुस्तकें भी बच्चों के उपयोग में आने वाली चीजों के साथ सहज में दे सकते हैं
         इन छोटे और सार्थक उठाए गए कदमों के दूरगामी, पर स्थायी परिणाम अवश्य आ सकते हैं। यही हमारी हिंदी चाहती भी है कि बोलने में समय व्यर्थ न करते हुए, कुछ सार्थक करके हम सब किसी न किसी रूप में हिंदी को आगे बढ़ाने का जरिया बनें।
        बताइये…..क्या तैयार हैं?
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