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घूरे का हंस – पुरुष शोषण की थाह लेती कथा

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मैं खटता रहा दिन रात ताकि जुटा सकूँ हर सुख सुविधा का सामान तुम्हारे लिए और देख सकूँ तुम्हें मुस्कुराते हुए पर ना तुम खुश हुई ना...

दरवाजा खोलो बाबा – साहित्य में बदलते पुरुष की दस्तक

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  “पिता जब माँ बनते हैं, ममता की नई परिभाषा गढ़ते हैं” कविता क्या है? निबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं कि, “जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था...

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति ...

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  मिसेज गुप्ता कहती हैं की उस समय परिवार में सब  कहते थे, "लड़की है बहुत पढाओ  मत | एक पापा थे जिन्होंने सर पर...
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