नव वर्ष पर हार्दिक शुभकामनाओ के साथ कविताओ का गुलदस्ता

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मंगलमय हो नव वर्ष 
पूरब से
उतरी नव किरणें
प्रदीप्त हुआ प्रभाकर नवीन
आज प्रभात के घाट पर
परिदृश्य हैं नवनीत


शरद ने शृंगार किया
धरा बनी दुल्हन
पुष्प कीरीट से शोभित क्यारी
हर्षित है चंपा की डाली
इंद्रधनुष के रंग भर
प्रकृति मनाए उत्कर्ष
भाव भरे जनकल्याण का
नवनिर्माण का
सृजन का और विकास का
कहें सभी सहर्ष
मंगलमय हो नववर्ष
हेमेंद्र जर्मा
दिलों में हो फागुन, दिशाओं में रुनझुन
हवाओं में मेहनत की गूँजे नई धुन
गगन जिसको गाए हवाओं से सुन-सुन
वही धुन मगन मन, सभी गुनगुनाएँ।
नव वर्ष की शुभकामनाएँ
ये धरती हरी हो, उमंगों भरी हो
हरिक रुत में आशा की आसावरी हो
मिलन के सुरों से सजी बाँसुरी हो
अमन हो चमन में, सुमन मुस्कुराएँ।
नव वर्ष की शुभकामनाएँ
न धुन मातमी हो न कोई ग़मी हो
न मन में उदासी, न धन में कमी हो
न इच्छा मरे जो कि मन में रमी हो
साकार हों सब मधुर कल्पनाएँ।
नव वर्ष की शुभकामनाएँ
– अशोक चक्रधर

नव प्रभाती 
नव-प्रभाती गुनगुनाकर जो किरण उतरी धरा पर,
मैं उसी के नाम लिखने जा रही हूं नव सृजन को।
भोर से ही दे रहा आहट
नया उत्कर्ष कोई।
या कि फिर आया जगाने
नित्य नूतन पर्व कोई।
हर ऋचा की मांगलिकता इन दिशाओं से उतर कर,
दे रही हैं सूचनाएँ भारती को, हर भुवन को।


सूर्य फिर करने लगा है
इस धरा पर दस्तकारी।
और केसर की किरण
करने लगी है चित्रकारी।
शस्य- श्यामल प्रकृति के फिर गीत गाने लग गई है,
हवा दुलराने लगी अठखेलियाँ करते सपन की।


आज हम हर कंकरी को
फूल का आकार दे दें।
हर कली को भ्रमर-दल
जैसा,मधुर गुंजार दे दें।
आज जन-जन को समर्पित हैं सकल शुभ- कामनाएँ,
और वह जो शेष है,अर्पित मनुजता की लगन को।


भीतरी कलमष हटाकर 
रोशनी के शब्द जोडें। 
जो घटा अपने विगत में
भूल जाएं और छोड़ें।
आज हम जो रच रहे हैं, वह बने इतिहास कल का,
बाँसुरी बन दे सुनाई लेखनी अपने गगन की।


निर्मला जोशी


फिर भी आएगा नया साल
साल की
पहली तारीख को छपने वाली पत्रिकाओं में
भरी है उबासी और थकान
साल के अंतिम दिन-सी।
डर भरे हैं जेबों में,
किशमिश
और चिलगोज़ों की जगह
कोई फौज लड़ती नहीं
अकेलेपन और
अपसंस्कृति के विरुद्ध
बारिशों में बरसती नहीं
शुभकामनाओं की मछलियाँ।
थोड़ी सी भी
खुशियाँ जमा नहीं हुई बैंक में
कि मनाया जा सके
नए साल का उत्सव।
सब सोये हैं
अपनी अपनी बेबसी से बुने
थुल्मे ओढ़े
बिछे हैं आडंबरों के कालीन
ज़मीन की सच्चाई पर
अब पाँव रखे नहीं जाते।
कोई लिखता नही खुशी के गीत
नया साल फिर भी आएगा
चुपचाप
आँखें झुकाए, बदन सिकोड़े
निकल जाएगा बिना बात किए
जिसकी अगवानी को तुमने
नहीं उबाला दूध
वो बाहें खोल
तुम्हें आशीष कैसे देगा?
–पूर्णिमा वर्मन
नयी सुबह  
चलो,
पूरी रात प्रतीक्षा के बाद
फिर एक नई सुबह होगी
होगी न,
नई सुबह?
जब आदमियत नंगी नहीं होगी
नहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
नहीं जलेंगीं नई चिताएँ
आदिम सोच, आदिम विचारों से
मिलेगी निजात
होगी न,
नई सुबह?
सब कुछ भूल कर
हम खड़े हैं
हथेलियों में सजाये
फूलों का बगीचा,
पूरी रात जाग कर
फिर एक नई सुबह के लिए
होगी न
नई सुबह?

कुँअर रवीन्द्र



कलेन्डर
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यादों का
पुलिन्दा
पकड़ाते हुए
पुराना साल
नए साल के
कानों में चुपके से कह गया!
ये 
इंसानो की बस्ती हैं
सभल कर रहियो
आकाश जैसा कलेजा
और
धरती जैसा धैर्य रखियों
तबै साल भर
टिक पइयो!
साल पुजते पुजते
तुम्हारा
रोम रोम
कलंक,अपवाद,अत्याचार,
बलात्कार,और प्राकृतिक आपदाओं से
भर जायेगा!
फिर भी
लोगो को
चैन नही
आयेगा!
तो
कुछ नई बिमारियों का
नाम भी
तुम्हारे साथ
जुड़ जायेगा!
तुम्हारी धंजियाँ
उड़ाने में धरती का
बन्दा बन्दा
बाज
नही आयेगा!
और
जब तुम्हारा रोम रोम
उसके नाम
हो जायेगा
तो 
कुछ नही
बदलेगा
सिर्फ
कलेन्डर में
सन सम्वत
बदल
जायेगा!
कंचन आरज़ू
हैप्पी न्यू इयर 
नया साल आने वाला है
सब खुश है 
सबने तैयारी कर ली है
इस उम्मीद के साथ
शायद
जाग जाये सोया भाग्य
उसने भी
जिसने आपने फटे बस्ते में रखी
फटी किताब को
सिल लिया है
इस उम्मीद के साथ
शायद कर सके
काम के साथ विद्याभ्यास
उसने भी
जिसने असंख्य कीले लगी
चप्पल में फिर से
ठुकवा ली है नयी कील
इस उम्मीद के साथ
शायद पहुँच जाए
चिर -प्रतिच्छित मंजिल के पास
उसने भी
जसने ठंडे पड़े चूल्हे
और गीली लकड़ियों को
पोंछ कर सुखा लिया है
इस उम्मीद के साथ
शायद इस बार
बुझ सके पेट की आग
और उन्होंने भी
जो बड़े-बड़े होटलों क्लबों में
जायेगे पिता-प्रदत्त
बड़ी-बड़ी गाड़ियों में
सुन्दर बालाओं के साथ
नशे में धुत
चिंता -मुक्त
जोर से चिलायेगे
हैप्पी न्यू इयर
इस विश्वास के साथ
बदल जायेगी अगले साल
यह गाडी
और यह…….
वंदना बाजपेयी 

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