मुझे तुम्हारे जाने से नफरत है –संवाद शैली की खूबसूरत आदयगी

मुझे तुम्हारे जाने से नफरत है –संवाद शैली की खूबसूरत आदयगी
 
             
आजकल युवा लेखक बहुत अच्छा लिख रहे
हैं | अपनी भाषा,प्रस्तुतीकरण और शिल्प सभी में वो खूब प्रयोग कर रहे हैं | वो जो
देख रहे हैं महसूस कर रहे हैं वो बिना किसी लाग लपेट के, उन्हें खूबसूरत शब्दों
का जामा पहनाये, वैसा का वैसा ही परोस देते हैं, जिसकी ताजगी की भीनी –भीनी खुशबु
पाठक के मन को सुवासित कर देती है | शिल्प में भी कई प्रयोग हो रहे हैं, जिनमें
से कई आगे अपनी एक नयी शैली में विकसित होंगे | वैसे भी साहित्य, जीवन की तरह किसी
एक दायरे में बंधा हुआ ना होकर बहती हुई नदी की तरह निरंतर गतिशील होना चाहिए जो अपनी धाराओं में हर किसी को बहा ले जाए | जैसे –जैसे जीवन जटिल हो रहा है कहानियों के प्रस्तुतीकरण
में सरलता आई है, ताकि पाठक आसानी से उस जटिलता को आत्मसात कर सके | ऐसे ही सरल
से खूबसूरत प्रयोगों से युवा लेखक कई बार चौंका देते हैं …ऐसे ही मुझे चौकाया ‘प्रियंका ओम’ ने अपनी किताब “ मुझे तुम्हारे जाने से नफरत है” के माध्यम से | प्रियंका
ओम बिहार में जन्मी और पली बढ़ी हैं और फिलहाल दारे-सलाम, तंजानिया में रह रही हैं
| ये उनकी दूसरी किताब है | उनकी पहली किताब “वो अजीब लड़की” है |

 मुझे तुम्हारे जाने से नफरत है –संवाद शैली की खूबसूरत आदयगी


लेखिका -प्रियंका om


“मुझे तुम्हारा जाना
इतना बुरा नहीं लगता, जितना आना क्योंकि तुम हमेशा जाने के लिए ही आते हो, और मुझे
तुम्हारे जाने से नफरत है |”
ये वाक्य है संग्रह की प्रमुख कहानी “मुझे तुम्हारे
जाने से नफरत है” का | जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो उसका जाना अच्छा नहीं लगता |
लगता है वो हमारे साथ ही रुक जाए हमेशा के लिए कितने फिल्मी गाने इस खूबसूरत अह्सास् से
  भरे पड़े हैं | इसे लिखते समय
मेरे जेहन में
  अपने जमाने का एक बहुत
प्रसिद्द गीत ‘अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं बजने लगा है
  …लेकिन मिलन का ये समय ठहरता कहाँ है ?  उसे जाना होता है, और जाता भी है …लेकिन क्या हमेशा के लिए या फिर
से लौट आने के लिये ? वैसे ही जैसे मौसम जाते हैं फिर से लौट आने के लिए ,पानी भाप बन कर उड़
जाता है फिर बदरी बन बरसने के लिए, सूरज और चन्दा जाते हैं अगले दिन फिर लौट आने
के लिए | दरअसल ये कहानी जाने के दर्द पर विलाप करने की नहीं, बार –बार लौट आने
के मर्म को समझने की है | जब कोई हमारी जिन्दगी में बार –बार पलट –पलट कर आ रहा है
तो वो जाने के लिए नहीं जाता, वो रुकना चाहता है ठहरना चाहता है पर परिस्थितियाँ और हालत उसे मजबूर कर देते हैं |
 इस कहानी की शुरुआत बहुत ही दिलचस्प व् रहस्यमय है | इसमें कहानी के नायक को (जो अकेला , एकांत और निराश जिन्दगी बिता रहा होता है ) एक अजनबी लड़की का फोन आता है | हर फोन रहस्य को और गहरा कर देता है और नायक की बेचैनी को बढ़ा देता है | रहस्य से पर्दा उठातीं है नायक की दीदी और खुलता  है बचपन की स्मृतियों का पिटारा |  नायक -नायिका का बचपन का साथ  प्रेम की हल्की सी दस्तक बन कर मिट जाता है |
क्योंकि अभिषेक की
  सत्रह साल बड़ी दीदी जो
उसकी माँ सामान हैं उसे
  इस सब बातों में
समय ना बर्बाद करके पढाई पर ध्यान लगाने को कहतीं है | अभिषेक
 इस बात को भूल जाता है पर श्वेता …
श्वेता नहीं भूलती | एक बार फिर वो उसकी जिन्दगी में आती है, बहुत ही रोमांचक
तरीके से
 | परिस्थितियाँ एक बार फिर बदलती
हैं और 
अभिषेक एक बार फिर अपने एकांत में लीन  हो जाता है ….श्वेता फिर लौटती है …पर फिर उलझती है गुत्थी कि आखिर वो क्यों आई है ?  जाने के लिए या रूकने के लिए ? क्या इस बार अभिषेक बार –बार लौट के आने के मर्म को समझता है ? एक नये अंदाज में नए एंगल पर फोकस करती ये कहानी अपनी लेखन शैली के कारण
बहुत ही खूबसूरत बन पड़ी है | इस कहानी का दार्शनिक अंदाज में आगे बढ़ना बेहतरीन प्रयोग है | 

“और मैं आगे बढ़ गयी”
प्रेम में अधिकार जताने व् समर्पित होने के अंतर को बखूबी स्पष्ट करती है | मुझे लगता है ये कहानी स्त्रियों के लिए बहुत खास है क्योंकि अधिकतर स्त्रियाँ प्रेम के शुरूआती दौर में इस अंतर को नहीं समझ पातीं फिर जीवन भर दर्द झेलती हैं | कहानी  एक ट्रेन में नायिका वनिता के अपने पुराने प्रमी आदित्य के साथ अचानक व् अनचाहे  सफ़र शुरू होती है | आज
वनिता शादी शुदा है और एक बच्चे की माँ है जो अपने बच्चे के साथ ए .सी . टू टियर
में अकेली है और आदित्य अभी भी अकेला और उदास है | जाहिर है, ऐसे में आपस में
तानाकशी भी होगी और पुरानी यादें
 अपने बंद झरोखे खोल कर पुन : सामने भी आएँगी | कुछ अतीत और कुछ वर्तमान की ऐसी ही भागदौड़ के
साथ कहानी आगे बढती है | वनिता और आदित्य का प्रेम बचपन का प्रेम था, प्रेम क्या
था, उन्हें तो उनके माता-पिता ने बचपन में अपनी दोस्ती को पक्का रखने के लिए शादी
के वादे  की डोर में ही बाँध दिया था | पड़ोस में रहने वाले दो बच्चे जो साथ खेलते,
पढ़ते, और बढ़ते हैं ….शुरू से ही
  एक
दूसरे के प्रति आकर्षण में बंधे रहते हैं |

कहानी में जहाँ प्रेम
की छुटपुट फुहारें मन को रूमानी करती हैं वहीँ वहीँ आदित्य और वनिता के स्वभाव में
अंतर किसी अप्रिय भविष्य की तरफ भी इशारा करने लगता है | बच्चे जैसे –जैसे बड़े
होते जाते हैं, उनके परिवारों की सोच और परवरिश का अंतर स्पष्ट नज़र आने लगता है |
जहाँ वनिता का परिवार खुले विचारों का है, जिसमें पति –पत्नी दोनों को बराबर स्थान
है, वहीँ आदित्य का परिवार पुरुषवादी अहंकार और पितृसत्ता का पोषक …जहाँ घर की
स्त्रियों का काम बस पुरुषों को खुश करना, उनकी सेवा करना है | पारिवारिक गुण धीरे
–धीरे आदित्य में आने लगते हैं …वनिता को
घुटन मह्सूस होने लगती है | अन्तत: लव ट्राई  एंगल से गुज़रती हुई कहानी  निकेतन और वनिता के विवाह में परिणित होती  है | कहानी पढ़ते हुए पाठक
वनिता के फैसले को सही ठहराते हुए भी कहीं ना कहीं प्रेम में अकेले छूट गए आदित्य के प्रति भी सॉफ्ट
कॉर्नर रखता है, परन्तु कहानी के अंत में एक ऐसा जोर का झटका लगता है, कि पाठक
पूरी तरह से वनिता के “और मैं आगे बढ़ गयी” के फैसले पर अपनी भी सही की मुहर लगा
देता है | 

कहानी की खास बात ये है कि ये रिश्तों को पहचानने की समझ देती है | ये कहानी एक तरफ जहाँ अधिकार को प्यार समझ लेने की भूल के खिलाफ खड़ी होती है वहीँ इंसान का स्वाभाव  आसानी से नहीं बदलता का उद्घोष भी करती है | यहाँ पर ये कहानी फ़िल्मी कल्पनाओं और असली जिन्दगी के अंतर को स्पष्ट करती है | मेरे विचार से ये कहानी हर पाठक विशेषकर महिला पाठक के हृदय को छू लेगी |    

“लास्ट कॉफ़ी”  एक बेहद ही संजीदा कहानी है | जिसमें बच्चों के
शारीरिक शोषण का गंभीर मुद्दा उठाया है | एक लिफ्ट में एडोल्फ से लेखिका की
मुलाक़ात होती है | एडोल्फ जर्मन पिता व् भारतीय माँ की संतान है | उसके रहस्यमयी
व्यक्तित्व के प्रति लेखिका की रूचि जगती है | दरअसल वो अपनी नयी कहानी के लिए एक
ऐसा ही रहस्यमयी किरदार ढूंढ रही होती है | जहाँ लेखिका को एडोल्फ का रहस्य
आकर्षित कर रहा है वहीँ एडोल्फ को  उसका छल-कपट रहित नेक दिल | कुछ मुलाकातें होती
हैं और रहस्य और गहरा जाता है | एडोल्फ  वापस जर्मनी चला जाता है वहाँ  से एक किताब
भेजता है | जैसे –जैसे वो किताब पढ़ती है तो एडोल्फ के किरदार का  कुछ –कुछ रहस्य खुलने लगता है | कहानी आगे बढ़ती है और  अन्तत: एडोल्फ  अपने दर्द से मुक्ति पाता है | वो रहस्य क्या है , मुक्ति क्या है ये आप
कहानी पढ़ कर ही जानिये , पर फिलहाल मैं इतना कह सकती हूँ कि अपने कथ्य , शिल्प और
प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से ये एक बेजोड़ कहानी है | एडोल्फ़ का किरदार आपके मन में जगह बना लेता है | अपनी बात कहूँ तो ये कहानी, इस संग्रह की सबसे पसंदीदा कहानी है | 

‘प्रेम पत्र” इस
संग्रह की पहली कहानी है | ये कहानी किशोरवय की कशिश, प्रेम और आकर्षण के ऊपर हैं
| ये तीन सहेलियों की कहानी है …मीनू , काजल और श्वेता …जिसमें श्वेता सबसे
खूबसूरत , अंग्रेजी में तेज , व् प्रभावशाली व्यक्तित्व की मालकिन है , मीनू ‘टॉम
बॉय’ इमेज वाली गणित में तेज व् थोड़ी गुस्सैल है | काजल इन दोनों के बीच की |
तीनों की दोस्ती इतनी गहरी है कि क्लास के और बच्चों की लाख कोशिशों के बाद भी
नहीं टूटती | तभी काजल के दिल के दरवाजे पर अमर प्रेम की दस्तक देता है | तेजतर्रार 
मीनू से काजल को अलग
करने के लिए अमर अपने रिश्ते के भाई स्वप्निल से मदद मांगता है |  स्वप्निल लड़कियों को ‘पटाने’में मास्टर
है | वो ये चेलेंज स्वीकार कर लेता है | उसका प्लान मीनू को प्रेम के झूठे नाटक
में फंसाकर उसे काजल और अमर  के बीच टांग अड़ा कर रोकने का है | प्लान काम करने
लगता है …टॉम बॉय मीनू
  अपनी सख्त इमेज
से एक नाजुक , कोमल लड़की में तब्दील होंने
 
लगती है | जाने क्यों मीनू को पढ़ कर मुझे ‘कुछ –कुछ होता है “ की काजोल याद
आ रही थी |

खैर खून से लिखा एक
प्रेमपत्र स्वप्निल मीनू को देता है  ऐसे ही कुछ प्रेम पत्रों से ढेर सारा कन्फ्यूजन पैदा होता है | दोस्तियाँ टूटती हैं जुडती हैं | 
बहुत सारे नाटकीय मोड़ों के बाद राज खुलता है …और पाठक के चेहरे पर मुस्कान दौड़ जाती है|  इस कहानी को पढ़कर आप अपनी किशोर वय में एक बार जरूर घूम आयेगे | किशोर वय की पक्की दोस्ती -कच्ची दोस्ती, विपरीत लिंगी  आकर्षण और प्रेम की पहली दस्तक, जो व्यक्तित्व में ही परिवर्तन कर देती है | वो सब कुछ जो किशोर वय में होता है इस कहानी में बहुत सहज तरीके से व्यक्त हुआ है |  


कहानी काफी लम्बी है
| रोमांटिक कहानियों को पसंद करने वालों को ये कहानी पसंद आएगी , अलबत्ता मेरे लिए एक मामले में ये कहानी ज्ञानवर्धक रही , क्योंकि इसी कहानी के माध्यम से मुझे पता चला कि
प्रेमपत्र लिखने में केवल एक बूँद खून लगता है | सच में लडकियाँ  कितनी भावुक होती
हैं, जो इसे बड़ी गंभीरता से लेती हैं, इससे ज्यादा खून तो लड़कियों के पिया के नाम
की चूड़ियाँ चढाते उतारते हर बार निकल आता है | स्वाति का अहंकार कहीं ना कहीं
खूबसूरत स्त्रियों की सोच को दर्शाता है , जिसमें उनके लिए ये सहन करना मुश्किल हो
जाता है कि उनकी उपस्थिति में कोई किसी दूसरे को ज्यादा पसंद करे | हालांकि ये एक
राय ही है कोई नियम नहीं | कुल मिला किशोर उम्र की भावनाओं को उजागर करती एक
खूबसूरत प्रेम कहानी है | 

संग्रह की आखिरी कहानी ‘वी.टी स्टेशन पर एक रात‘ एक छोटी सी क्यूट सी कहानी है | कहानी की कमाल  की किस्सागोई और  दृश्य वर्णन प्रभावित करता है | ये एक नवविवाहित जोड़े की कहानी है जिसे अनचाहे ही मुश्किल हालत में एक रात वी टी स्टेशन पर बितानी पड़ती है | दरअसल वो प्लेन का सफ़र ना करके ट्रेन से मुंबई से राँची जाने का मन बनाते हैं पर  उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं होता कि ट्रेन का टिकट  मिलना इतना आसान नहीं है | रात का  समय , उनके पास कीमती सामान और स्टेशन की भीड़ में पल -पल मुश्किलों का सामना करता हुआ ये जोड़ा आपसी प्यार और समझ से वो रात बिताता है | ये रात जाते जाते उन्हें सबक भी दे जाती है कि आसान सी लगने वाली हर चीज आसान नहीं होती | 


‘मुझे तुम्हारे जाने
से नफरत है’
कहानी संग्रह में कुल पाँच  कहानियाँ हैं | इस की कुछ कहानियाँ  संवाद अदायगी की शैली में लिखी गयीं हैं, जो बहुत सुंदर लगती  है | वैसे  हर कहानी को लिखने की शैली अलग है | किसी एक लेखक की लेखन शैली में इतनी वैरायटी प्रभावित करती है | कई  कहानियों में किसी  एक किताब का जिक्र होता है , और उस किताब के साथ कहानी
के किरदार थोड़ी बहुत साम्यता स्थापित करते हुए चलते हैं | कहानियों का प्रवाह इतना तेज है कि एक बार किताब उठाने के बाद  पाठक उसमें बहता चला जाता है और पूरी किताब पढ़ कर के ही उठने का प्रयास करता है |  भाषा कहानी के पात्रों
के अनुरूप है | लास्ट कॉफ़ी में लेखिका कई भाषओं के वाक्यों का प्रयोग करतीं हैं जो
कहानी को आकर्षक बनाता है | जैसा की प्रियंका ओम ने आत्मकथ्य में लिखा है कि, “उन्हें शब्द आकर्षित करते हैं”, वैसे ही उन्होंने कहानियों में कई खूबसूरत शब्दों
का प्रयोग किया है जो चमत्कार उत्पन्न करते हैं | कई जगह मुहावरों का भी प्रयोग  हुआ जो कहानियों की रोचकता को बढ़ाते हैं | भाषा नई  वाली हिंदी है | नई वाली हिंदी वैसे कोई अलग नहीं है पर ये वो भाषा है जो आज का युवा बोलता है | जिसमें हिंदी के साथ अंग्रेजी के शब्द भी सहज घुले -मिले हैं | ये हिंदी आज के नए पाठक वर्ग में स्वीकार्य भी है और लोकप्रिय भी | 



संग्रह का नाम बहुत सोच-समझ कर रखा गया है जो आकर्षित करता है | कवर पेज की डिजाइन लोकप्रिय किताबों की डिजाइन है , जिससे पाठक आकर्षित होता है | कवर देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि रहस्य से भरी कहानियाँ होगी |  कुल मिला कर ये
कहानी संग्रह एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह सुखद
 
अहसास कराता है |



मुझे  तुम्हारे जाने
से नफरत है –कहानी संग्रह

प्रकाशक -रेड्ग्रैब
बुक्स

लेखिका –प्रियंका ओम

पृष्ठ -183

मूल्य -175 रुपये

 समीक्षा -वंदना बाजपेयी 


समीक्षिका -वंदना बाजपेयी






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1 thought on “मुझे तुम्हारे जाने से नफरत है –संवाद शैली की खूबसूरत आदयगी”

  1. हमेशा की ही तरह पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा जगाती हुई बेहतरीन समीक्षा । लेखिका तथा समीक्षिका दोनों को ही बधाई ।

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