बातें किताबों की- नेहा की लव स्टोरी

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नेहा की लव स्टोरी

लिव इन जैसे सम्बंधों को भले ही कानूनी मान्यता मिली हो, मगर सामाजिक मान्यता नहीं मिली है।पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर युवा पीढ़ी इस ओर आकर्षित तो हुई है पर यह अभी विवाह के विकल्प के रूप में स्थापित नहीं हो सकी है l जिस रिश्ते में प्रवेश करते समय “साथ तो हैं पर साथ नहीं” की तर्ज पर किसी तरह का वादा ना हो उसके टूट जाने पर लगाए जाने आरोप लगाए भी तो किस पर और क्यों? बाज़रवाद से प्रभावित लिव इन का रैपर इतना शानदार है कि युवा इसके शिकंजे में आते जा रहे हैं, और पूरी पीढ़ी गुमराह हो रही हैl ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि उन्मुक्त जीवन की ओर अंधी दौड़ का दुष्परिणाम महिलाओं के हिस्से ज्यादा आता हैlऐसे में ऐसी विवेक सम्पन्न स्त्री को गढ़ना भी साहित्य का काम है जो अपनी जिंदगी का ये महत्वपूर्ण फैसला देह की कामनाओं की ज्वार में ना ले l आइए पढ़ते  हैं लिव इन जैसे मुद्दे पर अपनी बात रखते सुपरिचित कथाकार सोनाली मिश्रा के उपन्यास “नेहा की लव स्टोरी” पर डॉ. मीनाक्षी स्वामी की समीक्षा

बातें किताबों की- नेहा की लव स्टोरी

सोनाली मिश्रा का पहला उपन्यास ‘महानायक शिवाजी’ भी पढ़ा था। शिवाजी की वीरता के साथ माता जीजाबाई की भूमिका को भी सोनाली ने जिस तरह रेखांकित किया है, वह बहुत प्रभावी है। श्रेष्ठ समाज के निर्माण में माता की भूमिका के साथ शिवाजी के शौर्य, देशभक्ति आदि का सुगठित संयोजन उपन्यास में है।
सोनाली की दृष्टि स्पष्ट है। इसी कारण विचारों में भी स्पष्टता है। वे साहस के साथ उन्हें जो सही लगता है, उसके पक्ष में खड़ी रहती हैं। यही बात सोनाली के व्यक्तित्व को विशिष्ट बनाती है।
‘नेहा की लव स्टोरी’ उपन्यास बहुत दिनों से मंगाकर रखा था। मगर इस दौरान व्यस्तता के कारण अब पढ़ पाई।
वर्तमान में समाज में तेजी से नासूर बनी लव जिहाद की समस्या को परत दर परत इस उपन्यास में खोला गया है।
नारीवाद एक आयातित विचार है जो हमारे देश की संस्कृति के अनुकूल नहीं है। मगर हीनता ग्रंथि के चलते विदेशी संस्कृति को महान समझने की भूल अब कई समस्याओं के रूप में सामने आ रही है। इसी के चलते सनातन संस्कृति के प्रति पनपी हीन भावना हिंदू लड़कियों को दूसरे धर्म की ओर आकर्षित करने लगी। नारीवाद के प्रति आकर्षण, छद्म प्रगतिशीलता और अपनी जड़ों से दूरी इन लड़कियों को ऐसे शिकंजे में कसने लगी जिसमें जीवन की समाप्ति के अलावा कुछ हाथ न लगा। और जो जीती रहीं, वे मृत्यु से भी बदतर दशाओं में।
लिव इन जैसे सम्बंधों को भले ही कानूनी मान्यता मिली हो, मगर सामाजिक मान्यता नहीं मिली है।
हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझकर जीवन से जुड़ी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के गरिमामय और मर्यादित तरीके तय किए थे। ये परम्पराएं एक दिन में नहीं बनती। इनमें पीढ़ियों के सामाजिक अनुभवों का समावेश होता है। ये समाज हित में होती हैं। विवाह जैसी संस्थाएं और अपने जाति समूह में विवाह। समय के साथ परम्पराओं में बदलाव हुआ तो अपने धर्म के भीतर जातीय बंधनों के परे विवाहों को भी समाज द्वारा मान्य किया गया। अन्तरधार्मिक विवाह और लिव इन को मान्यता क्यों न मिली, आज इनके परिणाम देखकर हमें अपनी परम्पराओं पर गर्व के साथ पालन करने में दृढसंकल्पित होने का समय है।
‘नेहा की लव स्टोरी’ उपन्यास इसी बात को बहुत रोचक अंदाज़ में बयान करता है। किस तरह हिंदू लड़कियों को बरगलाया जाता है और फिर उनका जीवन बर्बाद किया जाता है। वे इस जाल में क्यों और कैसे फंसकर किस तरह तबाह हो जाती हैं। सब कुछ उपन्यास में उद्घाटित होता है। इससे बचने के लिए परिवार की भूमिका विशेष तौर पर माता की क्या भूमिका होना चाहिए। इस जाल से कैसे बचें।
जिस आयु में लड़कियों की आंखों में अपने जीवन को लेकर सुनहरे सपने होते हैं। उस आयु में उन्हें पूरा करने के लक्ष्य से भटककर वे बहुत सूक्ष्म तंतुओं से बने अदृश्य मगर अत्यंत खतरनाक जाल में फंस जाती हैं, जब उन्हें इसका एहसास होता है, तब तक इतनी देर हो चुकी होती है कि उससे निकल पाना उनके लिए असंभव हो जाता है। जो परिवारजन उन्हें निकाल सकते हैं, वे उस समय उनसे नाराज़गी, उनके उठाए गलत कदम पर उनसे क्रुद्ध होते हैं और सहारा नहीं देते हैं। इन्हें जाल में फंसाने वाले इनके परिवारजनों से दूर करने का जाल भी बड़ी धूर्तता से बुनते हैं। इस सबका मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक चित्रण दक्ष लेखिका ने बहुत कौशल से किया है।
किस तरह ब्रेन वॉश करते हुए भारतीय संस्कृति का विनाश करने का षड़यंत्र रचा गया है। हमारी परम्पराओं, मूल्यों पर आघात किया जा रहा है। आधुनिकता, प्रगतिशीलता, नारीवाद जैसे विमर्श किस तरह हमारी संस्थाओं पर हमला कर रहे हैं। नारीवाद के नाम पर हमारे समाज को स्त्री पुरुष के खांचे में बांटकर महिला और पुरुष को एक दूसरे के पूरक के स्थान पर विरोधी बनाकर समाज को तोड़ने का विमर्श रचा गया। उपन्यास में सोनाली ने गहन शोध, चिंतन, मनन, विश्लेषण के बाद कथानक को बुना है, यह पढ़कर ही जाना जा सकता है।
यह उपन्यास सोए हुए हिंदू समाज को झिंझोड़कर जगाता है कि उठो, जागो और अपनी अस्मिता की रक्षा करो।
यह उपन्यास हर किसी को जरूर ही पढ़ना चाहिए।
उपन्यास पूरे समय बांधे रखता है। यही कारण है कि एक बैठक में पढ़े बिना छोड़ा नहीं जाता है। सोनाली इस समस्या की जड़ तक जाती हैं और एक एक रेशा पूरी स्पष्टता से सामने रखती हैं।
ऐसे साहसिक उपन्यास के लिए सोनाली को साधुवाद।

डॉ. मीनाक्षी स्वामी

डॉ. मीनाक्षी स्वामी

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