सुनो कहानी नई पुरानी -कहानियों के माध्यम से बच्चों को संस्कृति से जोड़ने का अभिनव प्रयास

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“मम्मी इस घर का एक रूल बना दीजिए कि चाहे जो भी हो जाए इस फॅमिली का कोई मेम्बर एक-दूसरे से बात करना बंद नहीं कर सकता है l”
यूँ तो साहित्य लेखन ही जिम्मेदारी का काम है पर बाल साहित्य के कंधे पर यह जिम्मेदारी कहीं ज्यादा महती है क्योंकि यहाँ पाठक वर्ग एक कच्ची स्लेट की तरह है, उसके मन पर जो अंकित कर दिया जाएगा उसकी छाप से वो जीवन भर मुक्त नहीं हो सकता l आज इंटरनेट पीढ़ी में जब दो ढाई महीने के बच्चे को चुप कराने के लिए माँ मोबाइल दे देती है तो उसे संस्कार माता-पिता से नहीं तमाम बेहूदा, ऊल-जलूल रील्स या सामग्री से मिलने लगते हैं l ऐसे में बाल साहित्य से बच्चों को जोड़ना क कड़ी चुनौती है l जहाँ उन्हें मनोरंजन और ज्ञान दोनों मिले l किरण सिंह जी के बाल साहित्य के लेखन में ये अनुपम समिश्रण देखने को मिलता है l बाल साहित्य पर उनकी कई पुस्तकें आ चुकी हैं और सब एक से बढ़कर एक है l उनका नया बाल कहानी संग्रह “सुनो कहानी नई पुरानी” इसी शृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी है l

सुनो कहानी नई पुरानी -कहानियों के माध्यम से बच्चों को संस्कृति से जोड़ने का अभिनव प्रयास

 

किरण सिंह

संग्रह के आरंभ में बच्चों को लिखी गई चिट्ठी में वो अपनी मंशा को स्पष्ट करते हुए लिखती हैं कि, “कहानियाँ लिखते समय एक बात मन मिएन आई, क्यों नाइन कहानियों के माध्यम से आपको संस्कृति से जोड़ा जाएl”
वनिका पब्लिकेशन्स से प्रकाशित 64 पेज के इस बाल कहानी संग्रह में 14 कहानियाँ संकलित हैं l जैसा की नाम “सुनो कहानी नई पुरानी” से स्पष्ट है किरण सिंह जी ने इस बाल् कहानी संग्रह कुछ नई कहानियों के माध्यम से और कुछ पौराणिक कहानियों के माध्यम से बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़ने का अभिनव प्रयास किया है l इससे पहले वो ‘श्री राम कथमृतम के द्वारा सरल गेय छंदों में श्री राम के जीवन प्रसंगों को बच्चों तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण काम कर चुकी हैं l कहीं ना कहीं पाश्चात्य संभयता और संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण बच्चे अपने पूर्वजों के गौरव को भूलते जा रहे हैं l हमने वो समय भी देखा है, जब ये व्यंग्य खूब प्रचलित था बच्चे ये प्रश्न करते हैं कि, “सीता किसका बाप था ?” बात हँस कर टालने की नहीं, अपितु गंभीर चिंतन की थी क्योंकि व्यंग्य समाज की विसंगतियों पर प्रहार ही होते हैं l पर दुर्भाग्य से इस ओर विशेष कदम नहीं उठाए गए l
एक क्रूर सच्चाई ये भी है कि आज के माता- पिता को खुद ही नहीं पता है तो वो बच्चों को क्या बताएंगे l किरण सिंह जी इसे एक बहुत ही रोचक अंदाज में कहानियों के माध्यम से बुना है lफिर चाहें वो दीपावली क्यों मनाई जाती है ? मीरा का श्याम में अद्भुत विलय हो या जिज्ञासु नचिकेता के बाल सुलभ प्रश्न पूछने और जिज्ञासाओं को शांत कर ज्ञान अर्जित करने की कथा हो l हर कथा को इस तरह से बुना गया है कि आज के बच्चे जुड़ सकें l
जैसे कृष्ण-सुदामा की कहानी वहाँ से शुरू होती है, जहाँ दक्ष अपने दोस्त की शिकायत करता है कि वो उसका टिफिन खा जाता है l वो उसे मोंटू भी कहता है l माँ कृष्ण सुदामा के माध्यम से दोस्ती के अर्थ बताती हैं l दक्ष को समझ आता है और उसे अपनी गलती का अहसास भी होता है कि उसे अपने दोस्त को “मोंटू” नहीं कहना चाहिए, उसे उसके नाम ‘वीर’ से ही बुलाना चाहिए l वहीं दक्ष की बर्थ डे पार्टी में आया वीर भी वादा करता है कि वो अब दूसरे बच्चों का टिफिन नहीं खाएगा बल्कि खेल कूदकर योग करके खुद को पतला करने की कोशिश करेगा l ये कहानी मुझे इस लिए बेहद अच्छी लागि क्योंकि इसमें कृष्ण-सुदामा की कथा के माध्यम से दोस्ती के सच्चे अर्थ तो बताए ही, बच्चों को किसी दूसरे पर कोई टैग लगाने या बॉडी शेमिंग की प्रवत्ति पर भी प्रहार है l वहीं स्वास्थ्यकर खाने और योग से फिट रहने की समझ पर भी जोर दिया गया है l
इस संग्रह में केवल पुरानी कहानियाँ ही नहीं हैं कुछ बिल्कुल आज के बच्चों, और आज के समय को रेखांकित करती कहानियाँ भी हैं l जैसे रौनक ने अपने छोटे भी चिराग के बात-चीत बंद कर दी l छोटू चिराग से भैया की ये चुप्पी झेली नहीं गई l अब बंद बातों के तार जुड़ें कैसे ? लिहाजा उसने मम्मी से गुजारिश कर घर में ये रूल बनवा दिया कि घर में किसी का किसी से झगड़ा हो जाए तो कोई बात-चीत बंद नहीं करेगा l वहीं रौनक ने भी रूल बनवा दिया कि “कोई किसी की चुगली नहीं करेगा l”यहाँ लेखिका बच्चों के मन में ये आरोपित कर देती हैं कि आपसी रिश्तों को सहज सुंदर रखने के लिए संवाद बहुत जरूरी है l “कुछ दाग आच्छे होते हैं कि तर्ज पर कहूँ तो “ऐसे रूल भी अच्छे होते हैं l”
रोज रात में दादी की कहानी सुनने की आदी गौरी के माता-पिता जब दादी की तबीयत खराब होने पर गौरी को कहानी ना सुनाने को कहते हैं ताकि उनके ना रहने पर गौरी के कोमल मन पर असर ना पड़ें तो दादी चुपक से टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर अपनी कहानियों को पोती के लिए संरक्षित कर देती हैंl यह प्रयोग मन को भिगो देता है l नए जमाने के साथ चलती ये कहानी बाल मन के साथ साथ बुजुर्गों को भी अवश्य बहाएगी और दिशा देगी l
बाल कहानियाँ लिखते हुए किरण सिंह जी ने इस बात में पूरी सतर्कता रखी है कि भाषा, शिल्प, शैली आज के बच्चों के अनुरूप हो l कहानी में छोटे-छोटे, रोचक, और बहुत सारे संवादों का प्रयोग कर उसकी पठनीयता को बढ़ाया है l हर कहानी में मजे- मजे में एक शिक्षा नत्थी करके बाल मन को संस्कारित करने का प्रयास किया है l वनिका पब्लिकेशन की मेहनत संग्रह में साफ दिखती है l कागज़, बच्चों को आकर्षित करते चित्र और प्रूफ रीडिंग हर दिशा में नीरज जी और उनकी टीम की मेहनत स्पष्ट नजर आती है l कवर पेज डिज़ाइन विशेष रूप से उल्लेखनीय है l इसके लिए वो बधाई की पात्र हैं l
कुल मिलाकर एक अच्छे बाल संग्रह के लिए किरण सिंह जी को बधाई l त्योहारों के मौसम में अगर आप भी अपने बच्चों या अपने आस-पास के बच्चों को कोई तोहफा देना चाहते हैं तो ये एक अच्छा विकल्प है l
समीक्षा -वंदना बाजपेयी
वंदना बाजपेयी
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  1. हमेशा की तरह आपने मेरी इस पुस्तक की पूरे मनोयोग से समीक्षा करके बाल पाठकों तक पहुंचाने का कार्य किया है इसके लिए मैं आपका हृदय से आभार प्रकट करती हुए यही कामना करती हूँ कि हम यूँ ही ताउम दोस्ती के अटूट बंधन में बंधे रहे। ❤️🌻🌹🙏🌹🌻❤️

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