अन्तराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर कविता – मैं वृद्धाश्रम में हूँ

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मैं
वृद्धाश्रम में हूँ
पर दुखी नहीं हूँ
अपने समवयस्कों के साथ
मिल कर
गति देती हूँ
दैनिक कार्यों को
यहाँ सब
बाँटते हैं एक साथ
अपने सुख
धूप में बैठ कर
लगाते हैं ठहाके
कभी जाते पिकनिक
तो कभी देखते फ़िल्म
टी वी पर सुनते
देश विदेश के समाचार भी
देखते सीरियल भी
पड़ता जब बीमार कोई
लग जाते हैं सब
सेवा में उसकी
जब तक वह ठीक नहीं
हो जाता
यहाँ
न नफ़रत है
न स्वार्थ
केवल प्रेम है
क्योंकि सबके दुःख सुख
एक समान हैं
अपनों से तिरस्कृत
सब बन जाते यहाँ
रक्त संबंध बिसरा
सबके अपने
भूले से कभी
आ गये बेटा बहू
पोते-पोती कभी
तो कहूँगी मैं
न आना कभी भी
अपनी दिखावे की दुनिया
लेकर यहाँ
मैं यहाँ
प्रेमधाम में
अपनों के साथ
प्रेम में मस्त हूँ
व्यस्त हूँ ।


डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई “


2 COMMENTS

  1. इसलिए ही तो कहा गया हैं कि जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहियो। सुंदर प्रस्तुति।

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