किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता :जिम्मेदार कौन ?

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किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता :जिम्मेदार कौन ?

किशोरावस्था यानि उम्र का वो पड़ाव जिसमें उम्र बचपन व् युवास्था के
बीच थोडा सा विश्राम लेती है | या यूँ कहें  
न बचपन की मासूमियत है न बड़ों की सी समझ और ऊपर से
ढेर सारे शरीरिक व् मानसिक और हार्मोनल परिवर्तनों का दवाब | शुरू से ही
किशोरावाथा “ हैंडल विथ केयर “की उम्र मानी जाती रही है | और यथासंभव परिवार व्
समाज इसका प्रयास भी करता रहा है | और किशोर अपनी इस उम्र की तमाम परेशानियों से
उलझते सुलझते हँसी – ख़ुशी
 युवावस्था में
पहुँच ही जाते हैं | पर
 निर्भया रेप कांड के
बाद मासूम प्रद्युम्न की हत्या की जांच की जो खबरे आ रही हैं | वो चौकाने वाली हैं
| अगर अपराधी मानसिकता की बात करें तो किशोर बच्चे अब बच्चे नहीं रहे | चोरी ,
बालात्कार और हत्या जिसे संगीन अपराधों को अंजाम देने वाले ये किशोर किसी खूंखार
अपराधी से कम नहीं है |

आखिर बच्चों में इतनी अपराधिक प्रवत्ति क्यों पनप रही है | हम हर बार
पढाई का प्रेशर कह कर
  समस्या के मूल को
नज़रअंदाज नहीं कर सकते | बच्चों में सहनशक्ति की कमी होती जा रही है और गुस्सा
बढ़ता जा रहा है व् अपराधिक प्रवत्तियां जन्म ले रही हैं |हमें कारण तलाशने होंगे |


किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता: संयुक्त परिवारों का विघटन  है
जिम्मेदार



*नौकरी की तलाश में पिछली पीढ़ी अपना गाँव ,शहर छोड़ कर दूसरे शहरों में
बस गयी | संयुक्त परिवार टूट गए | साथ ही छूट गया दादी नानी का प्यार भरा अहसास और
सुरक्षा का भाव | क्रेच में पले
 हुए बच्चे
जो स्वयं प्यार के लिए तरसते हैं उन में मानवता के लिए प्यार की भावना
  आना मुश्किल है |


*दादी नानी की कहानियों की जगह हिंसात्मक वीडियो गेम जहाँ गोली चलाना
, मार डालना खेल का हिस्सा है | उसे खेलते हुए बच्चों में अपराधिक मानसिकता की
पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है | उन्हें मरना या मारना कोई बड़ी बात नहीं लगती |
आंकड़ों की बात की जाए तो किशोर आत्महत्या भी बढ़ रही है | जरा सी बात में अपनी
जिंदगी भी
  समाप्त कर देने में वो परहेज
नहीं करते |कई उदहारण तो ऐसे आये कि माँ ने जरा सा डांट दिया या कुछ कह दिया तो
बच्चे ने आत्महत्या कर ली | या फिर माँ ने टी .वी देखने को मन किया तो बच्चे ने
माँ की हत्या कर दी | दोनों ही स्थितियों में मरने मारने की कोई प्री प्लानिंग
नहीं थी | कहीं न कहीं ये हिंसात्मक खेल बच्चों में हिंसा की और प्रेरित कर रहे
हैं | बहुत पहले काल ऑफ़ ड्यूटी वीडियो गेम देख कर एक नवयुवा ने कई बच्चों की हत्या
कर दी थी | आजकल इसका ताज़ा उदहारण “ब्लू व्हेल “ गेम है | दुखद है की इसे
 खेल कर बच्चे न सिर्फ अपने शरीर में चाकू से गोद
कर व्हेल बना रहे हैं बल्कि जीवन भी समाप्त कर रहे हैं |
 

  • एकल  परिवारों में जहाँ हर बात
    में बच्चों की राय ली जाती है |कुछ हद तक यह बच्चों को निर्णय लेना सिखाने व्
    परिवार में उनकी राय को अहमियत देने के लिए जरूरी है | पर अति हर जह बुरी होती है
    | कौन सा सोफे लेना है , बच्चों से पूँछो , चादर का रंग बच्चो से पूँछ कर , घर का
    नक्शा बच्चों से पूँछ कर | जब सब कुछ बच्चों से पूँछ कर हो रहा है तो बच्चे अपने
    को
      बड़ों के बराबर समझने लगते हैं | लिहाज़ा
    उनसे कही गयी हर बात उन्हें अपना अपमान लगती है |उन्हें राय लेने नहीं देने की आदत
    पड़
     चुकी होतीहै | जब उन्हें कह जाता है की
    बेटा गुस्सा न करों , अच्छे से पढाई करो या दोस्तों से झगडा न करों तो वो सुनने
    वाले नहीं हैं | बल्कि १० तर्क दे कर माता – पिता को ही चुप करा
     देंगे |

 किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता : पढाई का प्रेशर है जिम्मेदा


* आज बच्चे के हर दोष के लिए पढाई का प्रेशर कह कर उसे दोष मुक्त कर
दिया जाता है | बच्चों पर पढाई का प्रेशर हमी ने डाला है | खासकर छोटे बच्चों में
| जहाँ हम इसी तुलना में लगे रहते हैं की किसके बच्चे ने A फॉर एप्पल के आलावा A
फॉर ant पहले सीख लिया | हमने इसे नाक का प्रश्न बनाया है |आज छोटे बच्चों की माएं
स्वयं सुपर मॉम और अपने बच्चे को सुपर चाइल्ड बनाने की जुगत में लगी रहती हैं |इस
कारण वो स्वयं भी तनाव में रहती हैं व् बच्चों पर भी तनाव डालती हैं | ये तनाव
बच्चों की सांसों में इस कदर घुल मिल जाता है की उनके जीवन का एक हिस्सा बन जाता
है |जब तक परिवार को बात समझ में आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | अब तक
तनाव रिफ्लेक्स एक्शन में स्थापित हो गया होता है | जिसे वहां से निकाल पाना
 असंभव है | 


रही बात किशोर बच्चों की तो
किशोर बच्चों में पढाई का प्रेशर हमेशा से रहा है | यही वो उम्र होती है जब
प्रतियोगी परीक्षाएं दे कर करियर चुना जाता है |असफलताएं पहले भी होती थी | पर अब
असफलताएं सहन नहीं होती | न बच्चों को न माँ – बाप को |इसीलिए इस प्रेशर का
  मीडिया हाइप बना कर हम ही अपने बच्चों के सामने
प्रेशर , प्रेशर , प्रेशर का मंत्र
 जप कर कहीं
न कहीं उनके दिमाग में यह बात बिठा दी जाती है की उनके साथ कुछ गलत हो रहा है |इस
कारण किशोर बच्चे अक्सर बौखलाए से रहते हैं | क्रोध उनको अपराध की ओर प्रेरित करता
है | उनको माँ – बाप ,समाज दुश्मन से नज़र आते हैं | 

        इस बात से इनकार नहीं किया जा
सकता कि जिन घरों में किशोर बच्चे है उनके माता – पिता उनके इस अतिशय क्रोध से डरे
रहते हैं | बच्चों के माता – पिता यह कहते है की हम तो उससे बात भी नहीं कर पाते
पता नहीं कब नाराज़ हो जाए | कहीं न कहीं ये बच्चों के स्वछंद हो जाने का कारण है |


किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता :सेल्फ प्रोमोशन है जिम्मेदार

                        
ये
जमाना सेल्फ प्रोमोशन का है | अभी १५ -२० साल पहले तक माता –पिता स्वयं अपने
बच्चों की तारीफ़ नहीं करते थे | वो कहते थे , जब सफल हो जायेगे तो उनके गुण स्वयं
सामने आ जायेंगे | आज माता –पिता
  मेरे
बच्चे सबसे अच्छे के अतरिक्त कुछ सोंच ही नहीं पा रहे है | इस कारण छोटे बच्चों को
मदारी की तरह अपने इशारों पर
  नाचने के
समान कहना , बेटा , पोयम सुनाओ
 , डांस
दिखाओं , एप्पल की स्पेलिंग बताओं आम चलन में है | फिर गर्व से कहना मेरा बच्चा
दूसरों से ज्यादा समझदार है | शुरू – शुरू में तो ये अच्छा लगता है | पर बाद में
ये एक दवाब बनाने लगता है |क्योंकि आगे जिंदगी “जॉनी –जॉनी यस पापा ‘नहीं है | समय
के साथ हर बच्चा बदल सकता है | जरूरी नहीं जो बचपन में अच्छे चित्र बनाता हो ,
डांस करता हो या पढाई में सबसे अच्छा हो , आगे चलकर उसकी रूचि उसी काम में रहे |
ये भी संभव है वो हर क्षेत्र में पिछड़ना शुरू कर दे | अब जब शुरू से ही अपने बच्चे
को हीरो
 बना कर पेश किया होता है | फिर अपने
ही बनाए झूठ का प्रेशर बच्चे व् माता – पिता दोनों झेलते हैं | ये सच है की थोडा
सा समजिक् दवाब सफलता के लिए जरूरी है पर जब ये दवाब इतना ज्यादा बढ़ जाए तो निराशा
या क्रोध में परिवर्तित होता है |
 


किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता :

अति जानकारी है जिम्मेदार


* हमने बच्चों को इन्टरनेट  के
साथ अकेला छोड़ दिया है | वयस्कों से सम्बंधित जानकारी कम उम्र में पा कर जल्दी बड़े
होते जा रहे हैं | यहाँ अगर मैं पोर्न या अश्लीलता की बात न करूँ तो भी बच्चों को
समय से पहले अत्यधिक जानकारी है | जिसके कारण उनकी मासूमियत खो गयी है | एक उम्र
चंदा
 को मामा समझने की भी जरूरी है ,
जरूरी है की एक उम्र में चाँद पर घर बनाने के सपने आँखों में पलें | आज चार साल के
बच्चे को पता है की चंद्रमा एक निर्जीव उपग्रह है वहां तो सांस लेने की हवा भी
नहीं |अतिशय जानकारी मासूमियत खत्म कर देती है | हम उम्र की एक पायदान ऊपर बढ़ कर
बचपन में किशोर , किशोरावस्था में युवा व् युवास्था में प्रौढ
 हो चले है | तो क्यों न ये समझा जाए कि ये  अपराध किशोर नहीं एक युवा कर रहा है |  


किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता :स्पेस है जिम्मेदार


                  
अभी हाल
में परिवार के अन्दर एक स्पेस की अवधारणा आई | माना गया की परिवार के हर सदस्य को
स्पेस चाहिए यानि ये जरूरी नहीं है की वो अपनी हर बात बताये | इस स्पेस ने शायद
कुछ अच्छा किया हो पर दुर्भाग्य वश इसने माता – पिता व् बच्चे के बीच एक दीवार खड़ी
 कर दी | बच्चों ने इसे अपना अधिकार समझा
|अब बच्चे कहीं जा रहे हैं , देर से घर आ रहे है या
  किसके साथ जा रहे हैं ये सामान्य से प्रश्न भी
स्पेस के घेरे में आ गए हैं | बच्चों पर बड़ों की निगरानी की जो लगाम जरूरी थी वो
स्पेस की कैंची से काट दी गयी |बच्चे निरंकुश
 हो गए | माता – पिता तो बच्चों का बैग चेक कर ही
नहीं सकते | अब वो चाहे स्कूल मोबाइल ले कर जाए या वोडका या चाकू घर में किसी को
पता नहीं होता | तो फिर उन्हें समझाए तो कैसे समझायें |
                                      
                     
                    ये बच्चे हमारे बच्चे हैं | हमारा , हमारे
देश का और सम्पूर्ण मानवता का भविष्य हैं | इनमें इस तरह की अपराधिक भावना आ जाना
किसी के हित में नहीं है | किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता के कारणों को समझ कर
हमें उन्हें दूर करने की जिम्मेदारी लेनी होगी | एक खुशहाल परिवार देश और समाज की
स्थापना करनी होगी |


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4 COMMENTS

  1. वंदना जी, जब से प्रद्युम्न के हत्यारे के बारे में पता चला सही में मन में एक तरह की उथल पुथल मची हुई हैं। क्यों हो रहे आजकल बच्चे ऐसे? बहुत सुंदर तरीके से इसका जबाब दिया हैं अपने।

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