Saturday, May 4, 2024
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नए साल पर प्रेम की काव्य गाथा -दिसंबर बनके हमारे प्यार की ऐनवर्सरी...

यूँ तो प्यार का कोई मौसम नहीं होता | परन्तु आज हम एक ऐसे प्रेम की मोहक गाथा ले कर आये हैं...

नवगीत-ठहरी शब्द नदी

चढ़े हाशिये  पर सम्बोधन ठहरी शब्द-नदी।। चुप्पी साधे पड़े हुए हैं कितने ही प्रतिमान यहाँ अर्थहीन हो चुकी समीक्षा सोई चादर तान यहाँ। ढूंढ रहे  चित्रित सम्वेदन छवियाँ नई नई।। अपशब्दों की भीड़ बढ़ी है आज विशेषण के आँगन में, सर्वनाम रावण हो बैठा संज्ञा शिष्ट नहीं...

मेरे भगवान् ..

                                               ...

पिता की अस्थियां ….

पिता , बस दो दिन पहले आपकी चिता का अग्नि-संस्कार कर लौटा था घर .... माँ की नजर में खुद अपराधी होने का दंश सालता रहा ... पैने रस्म-रिवाजों का आघात जगह जगह ,बार...

बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए …..

हाथों  में मेहँदी, पाँव में आलता और मांग में ,सिन्दूरी आभा लिए खड़ी है  दुल्हन  देहरी पर आँखों से गालों पर लुढके आँसू लाल...

ये इन्तज़ार के लम्हें

अनजान बेचैनियों में लिपटे,   मेरे ये इन्तज़ार के लम्हें  तुम्हें आवाज़ देना चाहते हैं..   पर मेरा मन सहम जाता है । तुम जानते हो क्यों?   फिर सवाल......

गीत-वेग से बह रहा समय

वेग से बह रहा समय, उम्र कटती जा रही है । विरह की बह रही नदी, सब्र घटता जा रहा है । अब नहीं अंतर्मन से , लोगों की...

घूंघट वाली औरत और जींस वाली औरत

आँखें फाड़ – फाड़ कर देखती है घूंघट  वाली औरत पड़ोस में आकर बसी जींस पहनने वाली औरत को याद आ जाते हैं वो...

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