भूख और कवि

0







नेताजी ने क्षेत्र में कवि सम्मेलन रखवाया ।
कवि को खबर करवाया शाम को कवि सम्मेलन है अपनी बेहतरीन कविता लेकर पहुँच जाना ।
कवि फूला न समाया । अपने सबसे नये कुरते पाजामें को कलफ किया । संदूक ने निकाला अपनी सहयोग के आधार पर छपी ताजातरीन काव्य संग्रह की प्रकाशक द्वारा दी गई एक मात्र प्रति को और झोले में रख छल दिया सम्मेलन को ।
पत्नी ने आवाज दी ” रोटी तो खालो । ”
कवि गुर्राये तुझे रोटी की पडी है वहाँ मेरा सम्मान होना है , मंत्री जी का कार्यक्रम है भूखे थोडे आने देंगे।
सम्मेलन शुरु हुआ कवि को मंच पर दुशाला ओढाकर सम्मानित किया गया । मंत्री जी कार्यक्रम छोडकर अपने गुर्गौं के साथ गेस्ट हाउस चले गये । कवि ने मंत्री जी की प्रशंसा और अपनी कविताओं के साथ मंच संभाल लिया ।


अल सुबह भूखे पेट स्टेशन पहुंचे गाडी मिलने में अभी दो घंटे थे । रह रहकर पत्नी याद आ रही थी वही चीखती हुई रोटी तो खा लो । लेकिन अब क्या हो सकता था । झोले से वही दुशाला निकाला और पेट पर लपेट कर बेंच पर लेट गए । आधे घंटे बाद एक खोमचा खुला । कवि महोदय बडी उम्मीद से उसके सामने जाकर खडे हो गए ” कुछ खाने को है । ” दुकानदार हँसा ” अभी तो दुकान खुली है बस रात के समोसे हैं । ”
” दे दो । ”
” दस रूपये का एक है कितने दूं । ”
कवि निरुत्तर हो गया दोनों हाथों से कुरते की दोनों जेबें टटोलने के बाद झोले में हाथ डाला और अपने एकलौते काव्य संग्रह की इकलौती प्रति निकाल कर सामने रख दी ।
दुकानदार किताब नीचे कहीं रखते हुए हँसा ” अच्छा कवि हो । ”
कवि ने सर झुका लिया उसने अखबार पर दो समोसे रखकर दे दिया । कवि चुपचाप खाने लगा तो दुकानदार ने धीरे से पूछा ” मिर्च है लोगे । ”
कवि ने कोई जबाब न दिया समोसा खत्म करने के बाद अखबारी कागज को घूर रहा था वो खबर थी कविता को उसके जनक ने ही दरिंदों के हाथ बेचा ।


कुमार गौरव 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here