भाग्य में रुपये

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भाग्य में रूपये

 कहा जाता है है कि हमें जीवन में जो भी मिलता है वो हमारे भाग्य में लिखा होता है | कहा ये भी जाता है कि कर्म करना हमारे हाथ में है | इस तरह कर्म और भाग्य में हम अक्सर उलझे रहते हैं | यहाँ पर “अटूट बंधन ” एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी प्रस्तुत कर रहा है जो इस उलझन को अवश्य दूर करेगी |

प्रेरक कथा -भाग्य में रुपये 

                 व्यापारी मोहन लाल  का धर्म -कर्म से वैसे तो कोई गहरा नाता नहीं था पर भाग्य से कर्म बनता है या कर्म से भाग्य इस प्रश्न में वो अक्सर उलझे रहते | अलबत्ता  शिवरात्री को वो अवश्य मंदिर जाया करते थे | इस बार जब उन्होंने मंदिर के बाहर पूजन सामग्री खरीदी और मंदिर की और बढ़ने लगे तो भारी भीड़ देख कर उन्हें अपनी चप्पल के खो जाने का भय उत्पन्न हुआ | चप्पलें नयी थी , ऐसे में उनकी चिंता स्वाभाविक थी |

वहीँ मंदिर के बाहर कई भिखारी बैठे थे | मोहन लाल जी ने सब भिखारियों को गौर से देखा |  एक भिखारी जो कि उन्हें शक्ल से थोडा इमानदार लग रहा था , क्योंकि उसके पास और कुछ चप्पले भी रखी थी, मोहन लाल जी को लगा शायद कुछ और लोगों ने ये चप्पलें उसके पास रख छोड़ी हैं | तो क्यों न वो भी अपनी चप्पलें उस भिखारी के पास निगरानी के लिए रखवा दें | उन्होंने उस के पास जाकर  कहा , ” मैं थोड़ी देर में दर्शन कर के आता हूँ | चप्पल तुम्हारे  पास उतार रहा हूँ , जरा थोड़ी देर निगरानी रखना | भिखारी ने हामी भर दी |

भोजन की थाली



मोहन लाल जी दर्शन के लिए मंदिर के अन्दर चले गए | मंदिर में बार – बार उन्हें उस भिखारी का ख्याल आ रहा था , उन्हें लग रहा था , बेचारा भिखारी , उसके पैर में तो चप्पल भी नहीं है  | बिवाइयाँ फटी हैं | फिर भी दूसरों की चप्पल की रखवाली कर  रहा है | उन्हें भिखारी पर दया आने लगी |

मोहन लाल के मन में दया भाव जागा , उन्होंने ने तय किया कि वो मंदिर से निकल कर उस भिखारी को १०० रुपये देंगें |

उधर बाहर बैठे भिखारी के मन में  ख्याल आया कि बाकि जो लोग चप्पल उतार गए हैं वो तो खस्ताहाल हैं , ये तो नयी है | क्यों न मैं इसे ले लूँ |  मालदार आसामी है , उसका क्या जाएगा , झट से नयी खरीद लेगा |

मोहनलाल जी जब मंदिर से बाहर निकले तो न वहाँ उनकी चप्पल थी , न वो भिखारी | थोड़ी बहुत देर तक परेशां हो वो नंगे  पैर ही घर की तरफ चल पड़े |

स्वाद का ज्ञान

रास्ते में फुटपाथ पर एक आदमी पुराने जूते -चप्पल बेंच रहा था | मोहनलाल जी रुक कर देखने लगे | वहीँ पर उनकी  चप्पले रखी हुई थी | मोहनलाल जी ने चप्पल का दाम पूंछा ? दुकान दार ने कहा , ” अभी -अभी एक आदमी १०० रूपये में बेंच कर गया है , आप को भी उतने में ही लगा दूंगा |

सुनकर मोहनलाल जी मुस्कुराए | आज उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था |  वे नंगे पैर ही घर की और चल पड़े | भिखारी के भाग्य में आज १०० रूपये लिखे थे | वो उसे मिलने ही थे … चाहे वो चप्पल की रखवाली कर के ईमानदारी से कमाता , चाहे उसने चप्पले चोरी कर और बेंच कर कमाए |

भाग्य का लिखा हमें मिलना ही है पर उस लिखे को प्राप्त करने में हम कर्म क्या कर रहे हैं ये हमारा अगला भाग्य बनेगा |

प्रेरक कथा
टीम ABC

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