शंख में समंदर-सोशल मीडिया के अनदेखे रिश्तों के नाम

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शंख समुद्र में पाए जाते हैं और शंख में भी में समंदर रहता है l लेकिन इस आध्यात्मिक बात को अगर लौकिक जगत में ले आयें तो संसार में सोशल मीडिया है और सोशल मीडिया में जीता जागता संसारl अपने- अपने घरों में, बाजार में, स्कूल में, ऑफिस में बैठकर इसमें आवाजाही करते रहते हैं| तो कभी लाइक और कमेन्ट के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्शाते हैंl कभी कोई एक घटना हर वाल पर उसकी प्रतिक्रिया के रूप में शंख के अंदर के जल की तरह ठहर जाती है तो कहीं हम एक पोस्ट पर बधाई और दूसरी पर विनम्र श्रद्धांजलि लिखते हुए भावनाओं के सागर में लहर-लहर बहते हैंl सच तो ये है कि हम ऐसे तमाम रिश्तों में बँध जाते हैं जिनसे हम कभी मिले ही नहीं...l
शंख समुद्र में पाए जाते हैं और शंख में भी में समंदर रहता है l लेकिन इस आध्यात्मिक बात को अगर लौकिक जगत में ले आयें तो संसार में सोशल मीडिया है और सोशल मीडिया में जीता जागता संसारl अपने- अपने घरों में, बाजार में, स्कूल में, ऑफिस में बैठकर इसमें आवाजाही करते रहते हैं| तो कभी लाइक और कमेन्ट के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्शाते हैंl कभी कोई एक घटना हर वाल पर उसकी प्रतिक्रिया के रूप में शंख के अंदर के जल की तरह ठहर जाती है तो कहीं हम एक पोस्ट पर बधाई और दूसरी पर विनम्र श्रद्धांजलि लिखते हुए भावनाओं के सागर में लहर-लहर बहते हैंl सच तो ये है कि हम ऐसे तमाम रिश्तों में बँध जाते हैं जिनसे हम कभी मिले ही नहीं…l

शंख में समंदर-सोशल मीडिया के अनदेखे रिश्तों के नाम

अनेक सम्मनों से सम्मानित डॉ. अजय शर्मा जी इससे पहले कई उपन्यास और कहानी संग्रह लिख चुके हैंl कुछ विश्वविध्यालयों में पढ़ाए भी जाते हैंl तकरीबन हर उपन्यास में वो नया विषय लाते हैंl साहित्य को समृद्ध करने के लिए ये आवश्यक भी है कि नए विषयों पर या उसी विषय पर नए तरीके से लिखा जाएl समकाल को दर्ज करने का साहित्यिक फर्ज वो हमेशा से निभाते रहे है पर शंख और समुद्र के बिम्ब के साथ लिखा गया उपन्यास “शंख में समुंदर” उनके पिछले उपन्यासों से ही नहीं साहित्य की दृष्टि से भी कई मामले में अलग हैl क्योंकि इसमें हमारी फेसबुक की घटनाओं का जीता जागता संसार हैl जहाँ ममता कालिया जी की “रविकथा” की समीक्षा पोस्ट करते हुए वंदना बाजपेयी की “वो फोन कॉल” की समीक्षा को कल डालने के लिए सेव करते डॉ.केशव हैंl जो कभी तमाम लेखकों और उनकी रचनाओं के बारे में विस्तृत चर्चा करते नजर आते हैं तो कभी वंदना गुप्ता जी के “कलर ऑफ लव” के मेसज का जवाब देते हुए जागरूकता का प्रसार करती उसकी विषय वस्तु की आवश्यकता पर प्रसन्न होते हैंl तो कहीं डॉ. सुनीता नाट्य आलोचना पर लंबा आख्यान देती हुई नजर आती हैंl डॉ. शर्मा के उपन्यासों में उन्हें अक्सर पत्रकार, लेखक, डॉक्टर वाली उनकी असली त्रिदेव भूमिका में देखा होगा पर यहाँ खुद को किसी उपन्यास के पात्र के रूप में देखना सुखद हैl
निराला ने जब छंद- बद्ध से अतुकांत कविता की ओर रुख किया तो वो गहन भावों की सरल सम्प्रेषणनीयता के कारण शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई l आजकल एक कदम आगे बढ़कर साहित्य में एक विधा से दूसरी विधा में आवाजाही का चलन हैl कविता में कहानी है तो कहानी में कविता का लालित्य, समीक्षा में पुस्तक परिचय का भाव सन्निहित है तो आलोचना थोड़े जटिल शब्दों में लिखी गई समीक्षा… पर उन सब का भी एक अलग स्वाद हैl ये स्वाद आज की युवा पीढ़ी को भा भी रहा है जो हर नई चीज का खुले दिल से स्वागत करती हैl ऐसे ही प्रयोग के तहत पाठक को इस उपन्यास में कविता, कहानी- “पर्त दर पर्त”, नाटक-“छल्ला नाव दरिया”, बौद्धिक विमर्श, प्रेरक कथाएँ, ऑनलाइन ऐक्टिविटी, पत्नी बच्चों के साथ सामान्य घरेलू जीवन सब कुछ मिल जाएगाl खास बात ये है कि इसमें मूल कथा कहीं भी प्रभावित नहीं होती, वो मूल कथा का एक हिस्सा ही लगते हैं और आम जीवन की कहानी आगे बढ़ती जाती हैl
कहानी के केंद्र में कोरोना की दूसरी लहर हैl कोरोना ने कितनी तकलीफ दी कि जगह ये उपन्यास कोरोना के उस सकारात्मक पहलू को देखता है जो इस समय “आपदा में अवसर” के रूप में उभर कर आएl लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में समय कैसे कटेगा के अवसाद में गए लोगों की जिजीविषा ने शीघ्र ही उन्हें समय के संसाधन का सदुपयोग करने की ओर मोड़ाl सोशल मीडिया का उपयोग साहित्यिक व अन्य कार्यक्रमों के लाइव के रूप में होने लगाl बाल काटने से लेकर नाली साफ करने तक के यू ट्यूब चैनल खुले, जो लोगों के खूब काम आएl महिलाओं ने नए-नए व्यंजन बनाने सीखे तो किसी ने गायन या नृत्य के अपने पुराने शौक आजमाने शुरू कियेl ऐसे में एक लेखक डॉ. केशव की नजर एक ऐक्टिंग सिखाने वाले ऑनलाइन कोर्स पर पड़ती हैl अपनी युवावस्था में वो अभिनेता बनना चाहते थे लेकिन तब वक्त ने साथ नहीं दियाlविज्ञापन देखकर एक बार वो “पुनीत प्रीत” फिर से जाग उठती है, और वो कोर्स में रजिस्ट्रेशन करवा देते हैंl यहाँ से कहानी अभिनय कला पर एक गहन शोध को ले कर आगे बढ़ती जाती है l हम एक शब्द सुनते हैं “वॉयस मॉड्यूलेशन’ पर इसके लिए किस तरह से ओम की ध्वनि को साध कर स्वर तन्तु खोलने हैंl “फ्लावर और कैन्डल” पर ध्यान लगा कर आवाज ही कंठ के गड्डे से नीचे से निकालनी है, ताकि स्टेज पर आते समय या बाहर जाते समय अभिनेता की जल्दी में ली गई साँस की आवाज दर्शकों को ना सुनाई देl किस तरह से सुर का बेस बदल कर के अशोक कुमार की आवाज से शक्ति कपूर की आवाज और अक्षय कुमार की आवाज तक पहुँचा जा सकता हैl रसों के प्रकार, भाव सम्प्रेषण आदि की विस्तृत चर्चा ने एक पाठक के तौर पर मुझे तृप्त किया l आजकल ऑडियो युग लौट रहा है, ऐसे में भावों को शब्दों में साधने की कला ऑडियो स्टोरी टेलिंग के काम में लगे लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगीl
उपन्यास में गुथी हुई कहानी, नाटक और प्रेरक कहानियाँ इसे गति देते हैं और रोचकता को भी बढ़ाते हैंl कुल मिला हमारी सोशल मीडिया की आम जिंदगी से निकला ये उपन्यास कई तरह का संतुलन साधते हुए सरपट भागता हैlउपन्यास विधा में इस नए प्रयोग के लिए डॉ.अजय शर्मा को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ l
वंदना बाजपेयी
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