बेबसी

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बेबसी





बुढ़ापा हमेशा से बेबस होता है , उसकी ये बेबसी उसकी संतान के लिए अपनी बात मनवाने का जरिया बन जाती है |


लघुकथा –बेबसी 





पिताजी!! जब से बंटवारा हुआ है, तब से तो खेती करना मुश्किल हो गया है। अब जमीन इतनी बची नहीं कि खेती के सारे उपकरण खरीद कर खेती कर सकें। इन्हें खरीद कर तो हम बैंक ब्याज भरते भरते ही मर मिटेंगे। और पैसे देकर खेती कराने पर भी हाथ पल्लेे को कुछ बचता नहीं।




ऊपर से ये बरसात, कभी बिन बुलायी मेहमान और कभी गूलर का फूल हो रही है “।

” ह्मम् ! बात तो तेरी ठीक है बेटा! ” पिताजी ने खाट पर पडे़ पडे़ ही बीडी़ में दम मारते हुए बेटे की बातों का हुंकारा भर दिया।


पिताजी! सुना है गांव के पास से सड़क निकलने वाली है, कुछ दिन से गांव में बिल्डरों की आवाजाही बढ़ रही है। बडी़ ऊंची कीमत पर जमीन खरीद रहे हैं।गांव में कई लोगों ने तो बेच भी दी। मैं सोच रहा हूं क्यूं न हम भी….”
“ना बेटा! ऐसा तो सोचना भी मत! जानता नहीं धरती हमारी मां होवे है। इसे कभी ना बेचेंगे”
” पर पिताजी हम उस पैसे से दूसरी जगह पर सस्ती और ज्यादा जमीन खरीद लेंगें “
” ना बेटा ना, तू मुझे ना समझा!! जब तलक मैं जिन्दा हूं, एक इन्च धरती भी इधर से उधर न करने दूंगा।
दोनों में बहस से माहौल गर्माता जा रहा था। न पिता झुकने के लिये तैयार थे, न पुत्र।


“पिताजी! मैं तो यही चाहता था, कि तुम दस पांच सालऔर बैठे रहते और हमारा मार्गदर्शन करते रहते ” रमेश ने अपने क्रोध पर अंकुश लगातेे हुए कहा।


” तू कहना क्या चाहवै बेटा ” पिता ने शंका भरी नजरों से बेटे की तरफ देखा।


” कुछ नहीं पिताजी! बस मैं तो ये बता रहा था वो जो फिछले दिनों सतीश के पिताजी गुजरे थे ना, जिन्हें सब हार्ट अटैक बता रहे थे। वो अटैक ना था।वो तो सतीश ने ही….., और वो राजेश के चाचा का भी दो महिने से कुछ पता न चल रहा है, लोग तो कह रहे है कि राजेश ने ही उन्हें उरे परे कर दिया है।


पिताजी रमेश के इशारे को समझ चुके थे।



” हां बेटा बात तो तेरी बिल्कुल सही है खेती में कुछ न बच रहा अब। तू कल ही बिल्डरों से बात कर ले और तू जहां कहेगा वहां दस्तखत कर दूंगा।

सुनीता त्यागी

मेरठ




लेखिका







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3 COMMENTS

  1. जी, यह कहानी नहीं आज के रिश्तों का सच है। मै मीरजापुर में जहां पूर्व में रहता था,वे बड़े जमींदार रहें, पुत्र की मंश है कि कुछ जमीन बेच दिया जाय पर वृद्ध पिता नहीं पर अड़े हैं और अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च चला रहे हैं। पुत्र कुछ भी नहीं करता है। दूसरी घटना में सूखा पड़ने पर पुत्र ने पिता को मार डाला और शोर मचा दिया कि फसल को बर्बाद होता देख हृदयाघात से उसके पिता की मौत हो गयी। इससे सरकार से आर्थिक सहयोग जो मिलता। पर राज खुल गया। कलयुगी पुत्र को सच उगलना पड़ा। सो, भलाई इसी में है कि वृद्धावस्थ से पूर्व ही वानप्रस्थ आश्रम का अभ्यास कर लिया जाए।

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